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वीरजिणिवचरित प्रथम मणिनी चन्दनाका जीवन-वृत्त ( सन्धि ९८), जीवन्धर मुनिके पूर्व भव ( सन्धि ९९ ), अम्बुस्वामीकी वीक्षा (सन्धि १००), प्रीतिकर-आख्यान ( सन्धि १०१ ) तथा महावीरनिर्वाण ( सन्धि १०२)। इनमें से जीवन्धर और प्रीतिकरके आख्यानोंको महावीरके ऐतिहासिक जीवन-वृत्तसे असम्बन होने के कारण पूर्णतया छोड़ दिया गया है, और शेष विवरणोंको इस प्रकार संक्षिस किया गया है कि उनमें महावीरका चरित्र निधि धारा रूपसे आ जाये ( सन्धि १-३ ) व उनके गणधर शिष्य जम्बूस्वामीका ( सन्धि ४) तथा आयिका चन्दनाका ( सन्धि ५) चरित्र स्वतन्त्र रूपसे प्रस्तुत हो जाये । ___महावीरके सम-सामयिक मगधमरेश श्रेणिक बिम्बिसार थे जिनके प्रश्नोंके आधारसे ही रामस्त जनपुराण साहित्यका निर्माण माना गया है। किन्तु उनका तथा महावीरकी विशेष भक्त महारानी बेलनाका एवं श्रेणिकके पुत्रोंकी दीक्षादिका वृत्तान्त महापुराणमें नहीं आ पाया | उसकी पूर्ति सन्धि ६-११ में श्रीचन्द्र कृत कहाकोसु क्रमशः सन्धि ५०; १२, १३, १४, ३ और ४९से कर ली गयी है जिससे श्रेणिकसे पूर्वके मगधनरेश चिलातपुत्र ( सन्धि ६) श्रेणिकका राज्यलाम, धर्मलाभ व परीक्षादि ( सन्धि ७-९) एवं उनके पुत्र बारिषेण ( सन्धि १० ) और गजकुमार (सन्धि ११) का वृत्तान्त विधिवत् समाविष्ट हो गया है। श्रीचन्द्र कृत कथाकोशका रचनाकाल वि. सं. ११२३ के लगभग (प्रकाशन अहमदाबाद, १०.६९) तीर्थकरके धर्मोपदेशके बिना यह संकलन अपूर्ण रह जाता। अतएव इरा विषयका आकलन अन्तिम १२वीं सन्धिमें महापुराणकी सन्धि १०-१२ से किया गया है। इस प्रकार यद्यपि सन्धियोंको संख्या १२ हो गयी है तथापि वे बहुत छोटो-छोटी है और उनमें कुल कडवकोंकी संख्या केवल ७१ है। कडवक भी प्राय: बहुत छोटे-छोटे ही हैं। प्रयत्न यह किया गया है कि अल्पकालमें ही महावीर तीर्थकर व उनके समयकी राजनैतिक परिस्थितियों का स्पष्ट ज्ञान पाठकको हो जाये तथा महाकविकी रचना-शैली व काव्यगुणोंकी रुचिकर जानकारी भी प्राप्त हो जाये । प्रस्तावनामें घटनाओं व महापुरुषोंसम्बन्धी विवेचन साहित्यिक परम्पराको स्पष्ट करने की दृष्टिसें किया गया है । मूल पाठमें समासान्तर्गत प्रत्येक शब्दको लघुरेखा द्वारा पृथक् कर दिया गया है जिससे अर्थ समझनेमें सरलता हो । कुछ स्थानों पर पाठ-संशोधन भी किया गया है, व नयी पद्धति के अनुसार ह्रस्व ए और थो की मात्राएँ भिन्न रखी गयी हैं । अनुवाद मूलानुगामी होते हुए भी भाषाकी दृष्टि से मुहावरेसे हीन न हो यह भी प्रयत्न किया गया है। साथ ही उसमें आये निलष्ट व पारिभाषिक शब्दों को कुछ खोलकर समझाने का भी प्रयाप्त