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प्रस्तावना
इस प्रकार आशा है कि यह छोटा-सा ग्रन्थ संकलन होते हुए भी महावीर भगवान्के जीवन चरित्रविषयक विशाल साहित्यमें अपना एक विशेष स्थान प्राप्त करेगा।
मयी रचनाका नामकरण भी एक समस्या होती है। विशेषतः जब एक ही विषय पर नयी-गुरानी अनेक रचनाएँ उपलभ्य हो तब उनके नाम स्पष्टत: पुथक न होनेसे भ्रान्तियां उत्पन्न होती है। प्राकृत व अपभ्रंशमें ऊपर उल्लिखित ग्रन्यनामावलिमें महावीर चरिय, अलमाण-चरिउ, बड्डमाण-कहा व सम्मइ-चरिउ नाम आ चुके हैं । पुष्पदन्तने इस चरित के आदिमें 'सम्मई' नामसे नायककी वन्दना की है व सन्धियोंकी पुष्पिकाओंमें उनके नामोल्लेख 'वीरसामि', 'वीरणाह', 'वडमाणसामि' व 'जिणिद' रूपसे किये हैं। अतः मैंने आदि और अन्तके पुषिपकोल्लेखोंको मिलाकर प्रस्तुत ग्रन्थको बीर-जिणिद-चरित कहना उचित समझा ।
-हीरालाल जैन