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हिन्दी अनुवाद सम्बन्धी याचक वेषसे रहित हैं। वे दुःखो जनोंको आश्चर्य-जनक दान देकर सुखी बनानेवाले शंभु है, किन्तु वे ऐ जान नहीं है जो कपाल धारण करके कौतुक उत्पन्न करते हैं। वे गुणोंके समुद्र होते हुए भी समुद्र के समान देवों द्वारा मथित नहीं किये गये। वे समर-शूर होते हुए भी ऐसे सूर्य नहीं हैं जिसे केतु ग्रह निगल जाये। वे धर्ममें आनन्द मानते हैं और आनन्दपूर्वक धनुष भी धारण करते हैं, तथापि वे अपने घरसे निर्वासित होकर धर्मराज युधिष्ठिरके समान दूर नहीं गये । वे अच्छे-अच्छे मल्लोंको भी पराजित करनेवाले नर थे, किन्तु नर अर्थात् अर्जुनके समान उन्हें बहनला नामक नर्तकीका वेष धारण नहीं करना पड़ा। वे अपने शत्रु-राजाओंके हृदय में भयरूपी शल्य उत्पन्न करते थे। उनके राज्यमें ग्राम सघनतासे बसे हुए थे, जिसके कारण उनमें मगोंको बसनेके लिए स्थान नहीं था। वे सर्वांग ऐसे पूर्ण और सुन्दर थे जैसे मानो पृथ्वोपर इन्द्र हो उतर आया हो। वे भुवन-मण्डलके चन्द्रमा थे, किन्तु चन्द्र के समान उनका अंग खण्डित नहीं होता था। वे याचक जनोंको कामनाओंको पूर्ण करने वाले कामधेनु होते हुए भी कामधेनु जेसी पशुअवस्थासे मुक्त थे। वे मनमें चिन्तित अभिलाषाओं को पूरा करनेवाले चिन्तामणि होते हुए भी अपने मन में चिन्ताओंसे विमुक्त रहते थे। वे कर्णके समान निरन्तर दानशील तथा धनुविद्यामें ख्याति-प्रास थे, तथापि वे कणके समान अपने सहोदर भ्राताओके शत्रु नहीं बने । उनको भुजाएं तो दो हो थों, किन्तु युद्धमें वे सहस्रबाहु जैसी वीरता दिखलाते थे। वे सूधो अर्थात् विद्वानोंको जीविका प्रदान करते थे, अतएव वे साक्षात् जोमूतवाहन थे जिन्होंने अपने मित्रके लिए अपना जीवन दान कर दिया। वे राजाधिराज लोगोंके दारिद्रयको दूर करनेवाले कल्पवृक्ष थे, तथापि कल्पवृक्ष के समान वे काष्ठ एवं कटु भाव-युक्त नहीं थे।
ऐसे उन सिद्धार्थ राजाकी रानी प्रियकारिणो देवी थों जो विशाल हाथियों के कुम्भस्थलोंके समान पीनस्तनी होती हुई समस्त नारी-समाजको चूडामणि थीं ॥६॥
___ कुण्डपुरको शोभा इन्द्र कुबेरसे कहते हैं कि हे कमल-नयन यक्ष, इन्हीं राजा सिद्धार्थ और रानी प्रियकारिणीके शुभ लक्षणोंसे युक्त मदिरादि व्यसनोका त्यागी पुत्र चौबीसवा तीर्थकर होगा, जिसके चरणोंमें इन्द्र भी नमन करेंगे ।