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घोरजिभिवचरित महल में लानेका प्रयत्न किया, किन्तु वे नहीं आये और महावती मुनि हो गये। उन्होंने पलासखेड़ नामक ग्राममें भिक्षा-निमित्त जाकर अपने एक बालसखाका भी सम्बोधन किया और उसे भी मुनि बना लिया। एक बार उसका मन पुनः अपनी पत्नीकी और लापमान हुअा। किन्तु बारगी उसे अपनी माता पेलनाके महलमें ले जाकर अपनो निरासक्ति भावनाके द्वारा पुनः मुनिव्रतमें दृढ़ कर दिया।
(ङ) श्रेणिक-सुत गजकुमार राजा थणिककी एक अन्य पत्नी धनश्री नामक थी। उसे जब पांच मासवा गर्भ था तब उसे वह दोहला उत्पन्न हुआ कि आकाश मेघाच्छादित हो, मन्द-मन्द वृष्टि हो रही हो, तब वह अपने पति के साथ हाथीपर बैठकर परिजनोंके सहित महोत्सवके साथ अनमें जाकर क्रीडा करे। उस समय वर्षाकाल न होते हुए भी अभयकुमारने अपने एक विद्याधर मित्रकी सहायतासे अपनी विमाताका यह दोहाला सम्पन्न कराया । यथासमय रानी धनश्रीने गजकुमार नामक पुत्रको जन्म दिया। जब वह युवक हुआ तब एक दिन उसने भगवान महावीर की शरणमें जाकर धोपदेश सुना और दीक्षा ग्रहण कर ली। एक बार गजकुमार मुनि कलिंग देशमें जा पहुंचे और वहाँकी राजधानी दन्तीपुरकी पश्चिम दिशामें एक शिलापर विराजमान होकर आतापन योग करने लगे । वहाँके राजाको ऐसे योगका कोई ज्ञान नहीं था। अतः उसने अपने मन्त्रीसे पूछा कि यह पुरुष ऐसा आताप • क्यों सह रहा है ? उनका मन्त्री बुद्धदास जैन-धर्म-विरोधी था। अतः उराने राजाको सुझाया कि इस पुरुषको वात रोग हो गया है और वह अपने शरीरमें गरमी लाने के लिए ऐसा कर रहा है । राजाने करुणाभावसे पूछा, इसकी इस व्याधिको कैसे दूर किया जाये ? मन्त्रीने उपाय बताया कि जब यह अनाथ पुरुष नगरमें भिक्षा मांगने जाये, तब उसके बैठने की शिलाको अग्निसे खूब नपा दिया जाये जिससे उसके ताप द्वारा उसपर बैठनेवालेकी प्रभंजन वायु उपशान्त हो जायेगी। राजाकी आज्ञासे वैसा ही किया गया । परिणाम यह हुआ कि जब गजकुमार मुनि भिक्षासे लौटकर उस शिलापर विराजमान हुए तब वे उसकी तीव्र तापके उपसर्गको सहकर मोक्षगामी हो गये। पश्चात् वहां देवोंका आगमन हुआ और वह मन्त्री, राजा तथा अन्य सहनों जन धर्म में दीक्षित हुए । (च) कौशाम्बीनरेश शतानीक व उदयन तथा
उज्जैनीनृप चण्डप्रद्योत चन्दनाके वृत्तान्तोंमें आया है कि बैशालीनरेश चेटककी सात पुत्रियों में से एक ममावती कौशाम्बी के सौमवंशी नरेश शतानीकसे ब्याही गयी थी। यह