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प्रस्तावना
हताघासिचतुष्कः सन्नशरीरो गुणात्मकः ।
गन्ता मुनिसहस्रेण निर्वाणं सर्ववाञ्छितम् ।। इन उल्लेखोंपर से स्पष्ट है कि भगवान् महावीरका निर्वाण पावापुरके समीप ऐसे वनमें हुआ था जिसमें आस-पास अनेक सरोवर थे। वर्तमानमें भगवानका निवाण-क्षेत्र पटना जिले के अन्तर्गत विहार-शरीफके समीप वह स्थल माना जाता है जहां अब एक विशाल सरोवरके बीच भव्य जिनमन्दिर बना हुआ है, और इस तीर्थक्षेत्रकी व्यापक मान्यता है। दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय एकमतसे इसी स्थलको भगवान्की निर्वाण-भूमि स्वीकार करते हैं ।
फिन्तु इतिहासज्ञ विद्वान् इस स्थानको वास्तविक निर्वाण-भूमि स्वीकार करने में अनेक आपत्तियां देखते हैं। कल्पसूत्र तथा परिशिष्ट पर्वके अनुसार जिस पावाम भगवान्का निर्वाण हुआ था वह मल्ल नामक क्षत्रियों की राजधानी थी। ये मल्ल वैशालीके वज्जि व लिच्छवि संघ में प्रवि थे, और मगधके एक सत्तात्मक राज्यसे उनका वैर था । अतएव' गंगाके दक्षिणवर्ती प्रदेश जहाँ वर्तमान पावापुरी क्षेत्र है वहाँ उनके राज्य होने की कोई सम्भावना नहीं है। इसके अतिरिक्त बौद्ध अन्धी जैसे-ध-
निय, शान्तिमा पिसे सिद्ध होता है कि पाबाकी स्थिति शाक्य प्रदेशमें थी और वह वैशालीसे पश्चिमकी ओर कुशीनगरसे केवल दश-बारह मीलकी दूरी पर था। शाक्यप्रदेशके साम-गाम में जब भगवान् बुद्धका निवास था तभी उनके पास सन्देश पहुँश था कि अभी अर्थात् एक ही दिन के भीतर पावामें भगवान महावीरका निर्माण हुआ है।
इस सम्बन्धके जो अनेक उल्लेख बौद्ध सन्थों में आये हैं उनका ऊपर उल्लेख किया जा चुका है। इन सब बातोंपर विचार कर इतिहासमा इस निर्णयपर पहुंचे हैं कि जिस पावापुरीके समीप भगवान्का निर्वाण हुआ था वह यथार्थतः उत्तरप्रदेश के देवरिया जिलेमें व कुशीनगर के समीप वह पावा नामक नाम है जो आजकल सठियांव ( फाजिलनगर ) कहलाता है और जहाँ बहुत-से प्राचीन खण्डहर व भग्नावशेष पाये जाते हैं। अतएव ऐतिहासिक दृष्टिसे इस स्थानको स्वीकार कर उसे भगवान् महावीरको निर्वाण भूमिके योग्य तीर्थक्षेत्र बनाना चाहिए।'
१. निर्माण भूमि-सम्बन्धी विस्तार पूर्वक विवेचन के लिए देखिए श्री कन्हैयालाल कृत
'पावा समीक्षा (प्रकाशक- अशोक प्रकाशन, वाटरा बाजार, लापा, बिहार १९:४२ )। हिमी एड कल्चर ऑफ दो इण्डियन प्रीपिल, खण्ड २ । दि एज अॅफ इमीरियल यूनिटी, पृ. ७ गल्ल।