________________
बीरर्जािणवचरित जम्भिक ग्रामके अतिनिकट ऋजकला नदी के तटवर्ती वनमें पहुँचे। वहां उन्होंने एक साल वृक्षके नीचे शिलापर ध्यानारूद हो दो दिन उपवासकर वैशाख शुक्ल दशमीके दिन अपराल कालम जब चन्द्र उत्तराषाढ़ और हस्त नक्षत्रों के मध्यमें था तब केवलज्ञान प्राप्त किया । यही बात उत्तरपुराण ( ७४, ३, ४९ आदि ) में इस प्रकार कही गयी है :
भगवान्वेधमानोऽपि नीत्वा द्वादशवत्सरान् । । छायस्थ्येन जगद्वन्धुजम्भिक-ग्राम-संनिधौ ।। ऋजुकूलानदीतीरे मनोहरवनान्तर । महारत्नशिलापट्टे प्रतिमायोगमावरान् ॥ स्थित्वा षष्ठोपवासेन सोश्वस्तात्सालभूरुहः । वैशाखे मासि सज्योत्स्नदशम्यामपरालके ।। हस्तोत्तरान्तरं याते शशिन्यारूढ़-शुद्धिक: 1 सापकश्रेणिमारुह्म शुक्लध्यानेन सुस्थितः ।। घातिकर्माणि निर्मूल्य प्राप्यानन्तचतुष्टयम् ।
परमात्मपदं प्रापत्परमेष्ठी स सन्मतिः ।। यही बात हरिवंशगुराग (२,५६-५९) में इस प्रकार कही गयी है :
मनःपर्ययपर्यन्त-चतुज्ञानमहेशणः । तपो द्वादशवर्षाणि चकार द्वादशात्मकम् ।। बिहरन्न थ नाथोऽसौ गुणग्राम-परिग्रहः । ऋजुकूलापगाकूले जम्भिक-ग्राममोयिवान् ।। तत्रातापनयोगस्थः सालाभ्यासशिलातले । यैशाख्न-शुक्लपक्षस्य दशम्यां षष्ठमाश्चित: ।। उत्तराफाल्गुनी प्राप्ते शुक्लध्यानी निशाकरे।
नित्य घातिसंघातं केवलज्ञानमाप्तवान् ।। इस प्रकार भगवान् महावीरका केवलज्ञान-प्राप्ति रूप कल्याणक जम्भिक प्रामके समीप ऋजुकुला नदीके तटपर सम्पन्न हुआ। इस ग्रामका नाम आचारंग सूत्र व कल्पसूत्रम जभिय तथा नदीका नाम ऋजुवालुका पाया जाता है।
अद्यापि अभी तक इस नाम और नदीको स्थितिका निर्णय नहीं हुआ, तथापि इसमें कोई सन्देह नहीं दिखाई देता कि उक्त नदी वही है जो अब भी विहारमें कुयेल या कुएल-कूला नामसे प्रसिद्ध है और उसके तट पर इसी नामका एक बड़ा रेलवे जंक्शन भी है। उसी के समीप जम्हुई नामक नगर भी है । अत: वही