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धीरजिणिवचरिउ
और चन्द्रगुप्त मौर्य बीच १५५ वर्षका अन्तर माना है वह वस्तुतः ठीक नहीं है ! डॉ. याकोबीने हेमचन्द्र परिशिष्ट पर्वका सम्पादन किया है और उन्होंने अपना यह मत भी प्रकट किया है कि उक्त कृति की रचना में शीघ्रता के कारण अनेक भूलें रह गयी हैं । इन भूलोंमें एक यह भी है कि वीर निर्वाण और चन्द्रगुप्तका काल अंकित करते समय के पालक राजाका ६० वर्षका काल भूल गये जिसे जोड़ने से वह अन्तर १५५ वर्ष नहीं किन्तु २१५ वर्षका हो जाता है। इस भूलका प्रमाण स्वयं हेमचन्द्र द्वारा उल्लिखित राजा कुमारपाल के कालमें पाया जाता है । उनके द्वारा रचित त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष चरित्र ( पर्व १०, सर्ग १२, श्लोक ४५४६ ) में कहा गया है कि वीर निर्वाणसे १६६९ वर्ष पश्चात् कुमारपाल राजा हुए । अन्य प्रमाणोंसे सिद्ध है कि कुमारपालका राज्याभिषेक ११४२ ई. में हुआ था । अतएव इसके अनुसार वीर-निर्वाणका काल १६६९ - ११४२ = ५२७ ई. पू. सिद्ध हुआ ।
डॉ. जायसवाल ने जो बुद्ध नित्रणिका काल सिंहलीय परम्परा के आधारसे ई. पू. ५४४ मान लिया है वह भी अन्य प्रमाणोंसे सिद्ध नहीं होता । उससे अधिक प्राचीन सिहलीय परम्पराके अनुसार मौर्य सम्राट अशोकका राज्याभिषेक बुद्धनिर्वाण २१८ वर्ष पश्चात् हुआ था । अनेक ऐतिहासिक प्रमाणोंसे सिद्ध हो चुका है कि अशोकका अभिषेक ई. पू. २६९ वर्ष में अथवा उसके लगभग हुआ था । अतएव बुद्ध-निर्वाणका काल २१८ + २६९ - ४८७ ई. पू. सिद्ध हुआ । इसकी पुष्टि एक चीनी परम्परासे भी होती है। चोनके केन्टन नामक नगर में बुद्ध-निर्वाणके वर्षका स्मरण बिन्दुओं द्वारा सुरक्षित रखनेका प्रयत्न किया गया है। प्रति वर्ष एक बिन्दु जोड़ दिया जाता था। इस बिन्दुओं की संख्या निरन्तर ई. सन् ४८९ तक चलती रही और तब तक विन्दुओं की संख्या ९७५ पायी जाती है। इसके अनुसार बुद्ध-निर्माणका काल ९७५ - ४८९ - ४८६ ई. पू. सिद्ध हुआ । इस प्रकार सिंहल और चीनी परम्परा में पूरा सामजस्य पाया जाता है। अतएव बुद्ध-निर्वाण का यही काल स्वीकार करने योग्य है ।
स्वयं पालि त्रिपिटकमें इस बातके प्रचुर प्रमाण पाये जाते हैं कि महावीर आयु में और तपस्या में बुद्ध ज्येष्ई थे, और उनका निर्वाण भी शुद्ध के जीवन काल में ही हो गया था । दोघनिकाय के श्रामण्य-फल-सुत्त, संयुक्त्त निकायके दहुर-सुत तथा सुत्तनिपातके सभय-सुतमें बुद्ध से पूर्ववर्ती छह तीर्थकों का उल्लेख भाया है । उनके नाम हैं पूरण कश्यप, मक्ख लिगोशाल, निगंठ नातपुत ( महावीर ), संजय बेलट्ठपुत्त प्रबुद्ध बच्चायन और अजितकेश कंबलि । इन सभी को बहुत लोगों
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द्वारा सम्मानित, अनुभवी, चिरप्रव्रजित व वयोवृद्ध कहा गया है, किन्तु बुद्धको ये