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७३ राजधानी इलाहाबादसे कोई ३५ मील दक्षिण-पश्चिम की ओर वहीं थी जहाँ अब कोसम नामका ग्राम है। जब महावीर कौशाम्बी आये और चन्दनाने उन्हें आहार दिया, तब रानी मृगावतीने भी आकर अपनी उस कनिष्ठ भगिनीका अभिनन्दन किया । शतानीक के पुत्र के उदयन थे जिनका विवाह उज्जैनीनरेश खण्डप्रद्योतकी पुत्री वासवदत्तासे हुआ था। बौद्ध साहित्यिक परम्परानुसार उदयनका और बुद्धका जन्म एक ही दिन हुआ था । तथा एक सुदृढ़ जैन परम्परा यह है कि जिस रात्रि प्रद्योत के मरणके पश्चात् उनके पुत्र पालकका राज्याभिषेक हुआ उसी रात्रि मावोरका निर्माण हुआ था। इस प्रकार ये उल्लेख उक्त दोनों महापुरुषों के समसामयिकत्व तथा तात्कालिक राजनैतिक स्थितियोंवर उपयोगी प्रकाश डालते है ।
प्रस्तावना
१४. महाबीर - जीवनचरित्र विषयक साहित्य का विकास (छ) प्राकृत में महावीर - साहित्य
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भगवान् महावीरका निर्वाण ई. सन् ५२७ वर्ष पूर्व हुआ और उसी समयसे उनके जीवन चरित्र सम्बन्धी जानकारी संगृहीत करना आरम्भ हो गया । भगवान् के प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम थे जो धवलाके रचयिता वीरसेन के अनुसार दारों वेदों और छहों अंगोंके ज्ञाता शीलवान् उत्तम ब्राह्मण थे। ऐसे विद्वान् शिष्यके लिए स्वाभाविक था कि वे अपने गुरुके जीवन और उपदेशोंको सुव्यवस्थित रूपसे संगृहीत करें। उन्होंने यह सब सामग्री बारह अंगोंमें संकलित की जिसे द्वादश गणि-पिटक भी कहा गया है। इनके बारहवें अंग दृष्टिवादमें एक अधिकार प्रथमानुयोग भी था जिसमें समस्त तीर्थकरों व चक्रवदियों आदि महापुरुषोंकी वंशावलियोंका पौराणिक विवरण संग्रह किया गया जिसमें तीर्थंकर महावीर और उनके नाथ या ज्ञातृवंशका इतिहास भी सम्मिलित था ।
दुर्भाग्यतः इन्द्रभूति गौतम द्वारा संगृहीत वह साहित्य अब अप्राप्य है । किन्तु उसका संक्षिप्त विवरण समस्त उपलभ्य अर्द्धमागधी साहित्यमें बिखरा हुआ पाया जरता है | समवायांग नामक चतुर्थ अंग में चौबीसों तीर्थंकरोंके माता-पिता, जन्मस्थान, प्रव्रज्या -स्थान, शिष्य वर्ग, आहार दाताओं आदिका परिचय कराया गया हुँ । प्रथम श्रुतांग आचारांग महाबोरको तपस्याका बहुत मार्मिक वर्णन पाया जाता है । पाँच श्रुतांग व्यारूपा प्रतिमें जो सहस्रों प्रश्नोत्तर महावीर और गौतम बीच हुए ग्रथित हैं उनमें उनके जीवन व तात्कालिक अन्य घटनाओंकी अनेक झलकें मिलती हैं । उनके समयमें पापत्यों अर्थात् पार्श्वनाथके अनुमाया बाहुल्य था तथा आजीवक सम्प्रदाय के संस्थापक मंखलि गोशाल उनके