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वर्णी-अभिनन्दन-प्रन्य
जगह पुष्प-वृष्टि और आरती के द्वारा जनता ने अपनी चिरभक्ति उनके चरणों में प्रकट की। जबलपुर, कटनी, दमोह, खुरई आदि स्थानों से अनेक महाशय पधारे थे ।
उत्सव के समय हीरक-जयन्ती का जो उत्सव स्थगित कर दिया था उसे अखिल-भारतीय रूप देने के लिए सागर-समाज की इस बीच में कई बैठकें होती रहीं। सौभाग्यवश १७-१०-१९४४ की बैठक में पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री, बनारस भी उपस्थित थे। आपने इस सुझाव पर जोर दिया कि उत्सव के समय पूज्य श्री के करकमलों में एक अभिनन्दन-ग्रन्य भेंट किया जाय जिसमें अभिनन्दन के सिवाय अन्य उत्तमोत्तम सामग्री भी रहे। समिति के सभापति श्री बाबू बालचन्द्रजी मलैया, बी. एस्सी. सागर, के हृदय में अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पण की बात घर कर गयी और तबसे उसकी तैयारी के लिए प्रयत्न करना सहर्ष स्वीकार किया। इसी दिन भारत के समस्त श्रीमानों और धीमानों की एक 'वर्गी हीरक-जयन्ती-समिति' बनायी गयी जिसमें १२५ सदस्य हैं। इन महानुभावों के पास पूज्यवर्णी जी की हीरक-जयन्ती मनाने और अभिनन्दन-ग्रन्य समर्पण करने का समाचार पहुँचा तब सबने इस महत्त्वपूर्ण कार्य की सराहना की और सबने यथाशक्य अपनी सेवाएं समर्पित करने की बात लिखी।
'अभिनन्दन-ग्रन्थ तैयार होने पर ही हीरक जयन्ती का आयोजन किया जाय।' यह निश्चित होने से अभिनन्दन-ग्रन्थ की तैयारी के लिए प्रयत्न किया गया। जैन तथा जैनेतर लेखकों से सम्पर्क स्थापित कर कुछ प्रारम्भिक रूपरेखाएं बनायी गयीं । कार्यालय में जितनी रूप रेखाएं आयों में उन्हें लेकर बनारस पहुंचा और वहां के अधिकतर जैन-विद्वानों की बैठक बुला कर उनपर विचार किया। विद्वानों ने यथायोग्य सुझाव दिये। बनारस से आने पर सागर में २१ सदस्यों की अभिनन्दन-ग्रन्य व्यवस्थापक-समिति का संघटन किया जिसकी प्रथम बैठक विद्वत्परिषद् के प्रथम वार्षिक अधिवेशन के समय कटनी में ७ मार्च १९४५ को हुई। इस बैठक में अभिनन्दन-ग्रन्थ का सम्पादन करने के लिए निम्नलिखित महानुभावों का एक सम्पादक-मण्डल चुना गया ।
१ डा० ए० एन० उपाध्याय कोल्हापुर २ पं० कैलासचन्द्रजी शास्त्री
बनारस ३ पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री ४ पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य ५ पं० खुशालचन्द्रजी साहित्याचार्य, एम. ए. बनारस
श्री पं० खुशालचन्द्रजी सम्पादक मण्डल के संयोजक-सम्पादक निर्वाचित हुए। कार्यभार प्रारम्भ करने के लिए श्री बालचन्द्रजी मलैया, सागर से प्राप्त एक हजार रुपयों के साथ समस्त फाइलें श्री खुशालचन्द्रजी को सौंप दी और कार्य को द्रुतगति से आगे बढ़ाने के लिए समिति ने उन्हें समग्र अधिकार दिये। उन्होंने सोत्साह कार्य प्रारम्भ कर दिया।
यह किसी से छिपा नहीं है कि बौद्धिक सामग्री का प्राप्त करना द्रव्य-प्राप्ति की अपेक्षा बहुत कठिन कार्य है। इस कार्य के लिए श्री पं० खुशालचन्द्रजी को बहुत परिश्रम करना पड़ा है। उच्चकोटि के जैनेतर लेखकों से बहुमूल्य सामग्री प्राप्त कर लेना यह आपके सतत परिश्रम का ही फल है।