Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 7
Author(s): Nand Kishor Prasad
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
"ज्ञान दूर कुछ, क्रिया भिन्न है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की ? न एक दूसरे से मिल सके, यह विडम्बना है जीवन की।" विज्ञान प्रकृति एवं सृष्टि के नियमों का अनुसंधान तो करता है लेकिन यह नहीं जानता है कि ये नियम प्रकृति में कहाँ से आये ? इसी को खोजना अध्यात्म है । ईशावास्य उपनिषद् में ऋषि कहता है
"वह है तभी तो संचरित यह प्राण है,
जो कर रहा क्रीड़ा प्रकृति की गोद में।" विज्ञान यह तो कहता है मस्तिष्क में विद्युत-तरंगों के माध्यम से हम पढ़ते और समझते हैं लेकिन विज्ञान यह नहीं बता पाता कि उन तरंगों से हम वहीं पक्तियां क्यों पढ़ते हैं ? विज्ञान सृष्टि का विधायक स्वरूप तो बता देता है लेकिन मानव-जीवन का लक्ष्य (ought) क्या हो, यह नहीं कह सकता। इसके लिये तो अध्यात्म की शरण में जाना ही होगा । बर्टेड रसेल ने ठीक ही कहा है कि "हम अपने लक्ष्यों एवं नैतिक आदर्शों के लिये कोई वैज्ञानिक आधार नहीं दे सकते।" इसलिये अध्यात्म का संयोग आवश्यक है। शुद्ध भौतिकवाद की अंतिम परिणति व्यक्ति और मानव जीवन में व्यर्थता एवं नगण्यता पैदा करना है। उसी प्रकार अंघ अध्यात्म दृश्यमान के मिथ्यापन को इतना खींच लेता है कि हम मायावाद में फंसकर काल्पनिक और अर्थहीन होने लगते हैं । "सुख की खोज" मानव-जीवन की सीमाहीन भूख एवं अतृप्त प्यास है। सुख को असीम तृष्णा ही शक्ति की खोज का भी रहस्य है । रामायण, महाभारत या आज के विश्व में महाशक्तियों की उद्दाम भोग लिप्सा पर आश्रित नृशंस लीला के ही उदाहरण हैं। आज तो पुनः साढ़े छः हजार वर्षों के बाद हम महाभारत के युग में आ गये हैं
"कर में विज्ञान और दिमाग में कूटनीति मारक अणु अस्त्रों का करता निर्माण है। पाकर वरदान अरे, भस्मासुर आज बना
मानव को हिंसा की शक्ति का गुमान है।" इसीलिये आज विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय मानव-सृष्टि के लिये अपरिहार्य हो गया है । १९६३ में पटना में आयोजित "अध्यात्म और विज्ञान" पर आयोजित परिसंवाद को संदेश में राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था-"विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय के बिना मानवता के विकास का सच्चा खतरा पहुँच चुका है।" पंडित नेहरू ने तो कहा"विश्व का भविष्य विज्ञान की प्रगति पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है। किन्तु अध्यात्म के मार्गदर्शन के बिना मानवता प्रलंयकारी दुर्घटना का शिकार हो जा सकती है।" इसीलिये "अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय के सम्बन्ध में चिंतन और मनन केवल भारत के लिये ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व-मानवता के लिये आवश्यक है"-ऐसा दार्शनिक राष्ट्रपति डा० राधाकृष्णन् ने कहा ।" श्री अरविन्द आश्रम की माता जी ने वेदना से कहा-“विज्ञान और अध्यात्म को विभाजित मत करो। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । दोनों का एक ही
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