Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 20
________________ १७ काविलीयं ॥ काविलीयं अष्टमं अध्ययनम् ॥ अधुवे असासयंमी संसारंमि दुक्खपउराए । किं नाम होज्ज तं कस्मयं जेणाहं दोग्गदं न गच्छेज्जा ॥ १ ॥ विजहित्तु पुव्वसंजोयं न सिणेहं कहिचि कुव्वेज्ज़ा । असिणेह सिणेहकरेहिं दोसपओसेहिं मुच्चए भिक्खू ॥ २ ॥ तो नाणदंसणसमग्गो हियनिस्सेसाय सव्वजीवाणं । सिं विमोक्खणट्टाए भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥ ३ ॥ सव्वं गन्थं कलहं च विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजासु पासमाणो न लिप्पई ताई ॥ ४ ॥ भोगामिसदोसविसण्णे हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । बाले य मन्दिए मूढे बज्झई मच्छिया व खेलंमि ॥ ५ ॥ दुपरिच्चया इमे कामा नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । अह सन्ति सुव्वया साहू जे तरन्ति अतरं वणिया वा ॥ ६ ॥ समणा मु एगे वयमाणा पाणवहं मिया अयाणन्ता । मन्दा निरयं गच्छन्ति बाला पावियाहिं विट्ठीहिं ॥ ७ ॥ [-८१४ नहु पाणवहं अणुजाणे सुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं जेहिं इमो. साहुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८ ॥ पाणे य नाइवाएज्जा से समिए त्ति वुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं निज्जाइ उदगं व थलाओ ॥ ९ ॥ जगनिस्सिएहिं भूपहिं तसनामेहिं थावरेहिं च । नो सिमारभे दंड मणसा वयस कायसा चैव ॥ १० ॥ सुद्धेसणाओ नच्चाणं तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए ॥ ११ ॥ पन्ताणि चेव सेवेज्जा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वक्कसं पुलागं वा जवणट्ठाए निसेवए मंथुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च सुविणं च अंगविज्जं च जे पउंजन्ति । नहु ते समणा वुञ्चन्ति एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥ १३ ॥ इहजीवियं अणियमेत्ता पब्भट्ठा समाहिजीएहिं । ते कामभोगरसगिद्धा उववज्जन्ति आसुरे काए ॥ १४ ॥ [JTS-II. U. 2]

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