Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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१४.२९ -] उत्तराध्ययनसूत्रम् पहीणपुत्तस्स हु बस्थि वासो वासिटि भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहए समाहि छिनाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥२९॥ पंखाविहूणो व्व जहेव पक्खी भिच्चविहूणो देव रणे नरिन्दो। विवन्नसारो वणिओ व्व पोए पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि॥३०॥ सुसंभिया कामगुणा इमे ते संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया। भुंजामु ता कामगुणे पगामं पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥३१॥ भुत्ता रसा भोइ जहाहणे वओन जीवियट्रा पजहामि भोए। लाभं अलामं च सुहं च दुक्खं संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ मा हू तुम सोयरियाण सम्भरे जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी। भुंजाहि भोगाई मए समाणं दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो॥३३॥ जहा य भोई तणुयं भुयंगो निम्मोयणि हिच्च पलेइ मुत्तो। एमए जाया पयहन्ति भोए ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ॥ ३४॥ छिन्दित्तु जालं अवलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाय। . धोरेयसीला तवसा उदारा धीरा हु भिक्खायरियं चरन्ति ॥३५॥ नहेव कुंचा समइक्कमन्ता तयाणि जालाणि दलित्त हंसा। फ्लेन्ति पुत्ता य पई य मज्झं ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ।। ३३ ।। पुरोहियं तं ससुयं सदारं सोचाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए। कुडुम्ब सारं विउलुत्तमं च रायं अभिक्खं समुवाय देवी ॥३७॥ वन्तासी पुरिसोरायं न सो होइ पसंसिओ। माहणेण परिच्चत्तं धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८॥ सव्वं जगं जइ तुहं सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जत्तं नेव ताणाय तं तव ॥ ३९॥ मरिहिसि रायं जया तया वा मणोरमे कामगुणे विहाय । एक्को हु धम्मो नरदेव ताणं न विज्जई अन्नमिहेह किंचि ॥४०॥ नाहं रमे पविखणि पंजरे वा संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं। अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा परिग्गहारग्भनियत्तदोसा ॥११॥ दवग्गिणा जहा रण्णे डज्झमाणेसु जन्तुसु। अन्ने सत्ता पमोयन्ति रागद्दोसवसं गया ॥४२॥ एवमेव वयं मूढा कामभोगेसु मुच्छिया। डज्झमाणं न बुज्झामो रागद्दोसग्गिणा जगं ॥४३॥

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