Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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२३.८३-] उत्तराध्ययनसूत्रम्
निव्वाणं ति अबाहं ति सिद्धी लोगग्गमेव य। खेमं सिवं अणाबाहं जं चरन्ति महेसिणो॥८३॥ तं ठाणं सासयं वासं लोगग्गमि दुरारुहं। जं संपत्ता न सोयन्ति मवोहन्तकरा मुणी॥८४॥ साहु गोयम पन्ना ते छिनो मे संसओ इमो। नमो ते संसयाईय सम्वसुत्तमहोयही॥८५॥ एवं तु संसए छिन्ने कैसी घोरपरक्कमे। अभिवन्दित्ता सिरसां गोयमं तु महायसं ॥८६॥ पंचमहत्वयधम्म पडिवज्जइ भावओ। पुरिमरस पच्छिमंमी मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८७॥ केसीगोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे। सुयसीलसमुक्कंसो महत्थऽत्थविणिच्छओ॥८८ । तोसिया परिसा सवा सम्मग्गं समुवट्रिया। संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे ॥ ८९॥ त्ति बेमि॥
॥केसिगोयमिजं समत्तं ॥१३॥
॥ समिईओ चतुर्विशं अध्ययनम् ॥
अट्र पवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य। पंचेव य समिईओ तओ गुत्तीओ आहिया ॥१॥ इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इय॥ मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अटुमा ॥२॥ एयाओ अट्ट समिईओ समासेण वियाहिया। दुवालसंगं जिणक्खायं मायं जत्थ उ पवयणं ॥३॥ आलम्बणेण कालेण मग्गेण जयणाइ य। चउकारणपरिसुद्धं संजए इरियं रिए ॥४॥ तत्थ आलंबणं नाणं देसणं चरणं तहा। काले य दिवसे वुत्ते मग्गे उप्पहवज्जिए ॥५॥

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