Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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३४.११-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् जह तिकडुयस्स य रसो तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ नीलाए नायवो ॥११॥ जह तरुणअम्बगरसो तुवरकविट्ठस्त वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ काऊए नायवो ॥१२॥ जहपरिणयम्बगरसो पक्ककविठ्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ तेऊए नायवो ॥१३॥ वरवारुणीए व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ। महुमेरयस्त व रसो पत्तो पम्हाए परएणं॥१४॥ खज्जूरमुद्दियरसो खीररसो खण्डसक्कररसो वा। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ सुक्काए नायवो ॥१५॥ जह गोमडस्स गन्धो सुणगमडस्स व जहा आहिमडस्स। एत्तो वि अणन्तगुणो लेसाणं अप्पसत्याणं ॥१६॥ जह सुरहिकुसुमगन्धो गन्धवासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अणन्तगुणो पसत्थलेसाणं तिण्हं पि ॥१७॥ जह करगयस्स फासो गोजिन्भाए व सागपत्ताणं । एत्तो वि अणन्तगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥१८॥ जह बूरस्स व फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं । एत्तो वि अणन्तगुणो पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥१९॥ तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा। दुसओ तेयालो वा लेसाणं होइ परिणामो ॥२०॥ पंचासवप्पवत्तो तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य । तिव्वारम्भपरिणओ खुड्डो साहसिओ नरो॥२१॥ निद्धन्धसपरिणामो निस्संसो अजिइन्दिओ। एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे ॥२२॥ इस्साअमरिसअतवो अविज्जमाया अहीरिया य । गेही पओसे य सढे पमत्ते रसलोलुए ॥२३॥ आरम्भाओ अविरओ खुड्डो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो नीललेसं तु परिणमे ॥२४॥ वंके वंकसमायारे नियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥२५॥

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