Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 112
________________ १०९ अणगारज्झयण [-३५.५. किण्हा नीला काऊ तिनि वि एयाओ अहम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो दुग्गई उववजई ॥५६॥ तेऊ पम्हा सुक्का तिमि वि एया धम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो सुग्गई उववज्जई ॥५७॥ लेसाहिं सवाहिं पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । नहु कस्सह उववाओ परे भवे अस्थि जीवस्स ॥५८॥ लेसाहिं सव्वाहिं चरिमे समयम्मि परिणयाहिं तु। न हु कस्सह उववाओ परे भवे अस्थि जीवस्स ॥५९॥ अन्तमुहत्तम्मि गए अन्तमुत्तम्मि सेसए चव। लेसाहिं परिणयाहिं जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥६॥ तम्हा एयासि लेसाणं अणुभावं वियाणिया। अप्पसत्थाओं वज्जित्ता पसत्थाओंऽहिट्टिए मुणि ॥६१॥ ॥त्ति बेमि ॥ लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४॥ ॥अणगारज्झयणं पञ्चत्रिंशं अध्ययनम् ॥ सुणेह मे एगमणा मग्गं बुद्धहिं देसियं । जमायरन्तो भिक्खू दुक्खाणन्तकरे भवे ॥१॥ गिहवासं परिञ्चज्ज पवजामस्सिए मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥२॥ तहेव हिंसं अलियं चोजं अवम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए ॥३॥ मणोहरं चित्तघरं मल्लधूवेण वासियं। . सकवाडं पण्डुरुल्लोवं मणसा वि न पत्थए ॥४॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए। दुकराई निवारे कामरागविवडणे ॥५॥

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