Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
View full book text
________________
सम्मत्तपरकमे
[-२९.३९ २९ सुहसाएणं मन्ते जीवे किंजणयह ॥ सु० अणुस्सय जणयइ । अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए अणुभडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्जं कम्म खवेह ॥२९॥
३० अप्पतिवद्धयाए णं मन्ते जीवे कि जणयह ॥ अ० निस्संगतं जणयह । निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरह॥३०॥
३१ विवित्तसयणासणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ वि० चरित्त. गृत्ति जणयइ। चरित्तगुत्ते य णं जीवे विविचाहारे दढचरिते एगन्तरए मोक्खभावपडिवन्ने अटविहकम्मगण्ठि निज्जरेह ॥३१॥
२ विनियदृणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ वि० पावकम्माणं अकरण्याए अब्भुटेइ । पुत्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्वेह तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइक्या ॥३२॥
१३ संभोमपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयह॥सं० आलम्बणाई खवेइ । निरालम्बणस्स य आययट्रिया जोगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संतुस्सइ परलाभं नो आसाएइ परलाभं नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अमिलसइ। परलाभं अणस्सायमाणे अतक्केमाणे अपीहमाणे अपत्थेमाणे अणमिलसमाणे दुच्चं सुहसेजं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ३३॥ -- ३४ उवहिपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे कि जणयह ॥ उ. अपलिमन्थं जणयहानिरुवहिए णं जीवे निक्कंसी उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सई ॥३४॥
३५ आहारपच्चक्खाणेणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ आ० जीवियासंसप्पओग वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दिता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सइ ॥ ३५॥
३६ कसायपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे कि जणयइ ॥ क. वीयरागभावं जणयह । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे मकह ॥३६॥
३७ जोगपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ जो० अजोगत्तं जणयइ । अजोगी जं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं निज्जरेइ ॥ ३७॥
३८ सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे कि जणयह ॥ स० सिद्धाइ. सयगुणत्तणं निव्वत्तेइ। सिद्धाइसयगुणसंपने य जं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥ ३८॥
३९ सहायपञ्चक्खाणेणं भन्ते-जीवे कि जणयह ॥ स० एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पझंझे अप्पकलहे

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132