Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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२९.६९-] - उत्तराध्ययनसूत्रम्
९० . . ६२ सोइन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सो० मणुलामणुनेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयह तप्पञ्चइयं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्ध च निज्जरेइ ॥६॥
६३ चक्खिन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ च० मणुनामणुनेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पचइयं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६३॥ .
६४ घाणिन्द्रियनिग्गहेणं भन्ते जीवे कि जणयइ ॥ घा० मणुनामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहे जणयइ तप्पच्चइयं कम्म. न बन्धह पुन्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६४॥
६५ जिन्भिन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ जि० मणुनामगुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ .. पुन्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६५॥
६६ फासिन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ फा० मणुनामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धह पुवबद्ध च निज्जरेइ ॥६६॥
६७ कोहविजएणं भन्ते जीवे कि जणयइ ॥ को खन्ति जणयह कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ पुथ्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६॥
६८ माणविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ मा० मद्दवं जणयइ माणवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६८॥
६९ मायाविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ मा० अज्जवं जणयइ मायावेयणिज्ज कम्मं न बन्धइ पुव्ववद्धं च निजरेइ ॥ ६९॥
७० लोभविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ लो० संतोसं जणयह लोभवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निज्जरेह ॥ ७० ॥
___७१ पिज्जदोसमिच्छादसणविजएणं भन्ते जीवे किं जणयह। पि० नाणदंसणचरित्ताराहणयाए अब्भुटेइ ॥ अट्टविहस्स कम्मस्स कम्मगण्ठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुवीए अटुवीसइविहं मोहणिज्जं कम्म उग्घाएइ पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दसणावराणज्जं पंचविहं अन्तरायं एए तिन्नि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ । तो पच्छा अणुत्तरं कसिणं पडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभासगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ । जाव सजोगी भवइ ताव इरियावहियं कम्म निबन्धइ सुहफरिसं इसमयठिइयं । तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं

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