Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 106
________________ १०३ कम्मपयडी स वीयरागो कयसव्यकिच्चो खवेइ नाणावरणं खणणं । तहेव जं दंसणमावरेह जं चऽन्तरायं पकरेंह कम्मं ॥ १०८ ॥ सव्वं तओ जाणइ पासए य अमोहणे होइ निरन्तराए । अणासवे झाणसमाहिजुत्ते आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥ १०९ ॥ सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को जं बाहई सययं जन्तुमेयं । दीहामयं विप्पमुक्को पसत्यो तो होइ अञ्चन्तसुही कयत्थो ॥ ११० ॥ अणाइकालप्पभवस्स एसो सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता कमेण अञ्चन्तसुही भवन्ति ॥ १११ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ पमायट्ठाणं समत्तं ॥ ३२ ॥ ॥ कम्मपयडी त्रयस्त्रिंशं अध्ययनम् ॥ अटु कम्माई वोच्छामि आणुपुवि जहक्कमं । जहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवट्टई ॥ १ ॥ नाणस्सावरणिज्जं दंसणावरणं तहा । वेयणिज्जं तहा मोहं आउकम्मं तहेव य ॥ २ ॥ नामकम्मं च गोयं च अन्तरायं तहेव य । एवमेयाई कम्माई अट्ठेव उ समासओ ॥ ३॥ नाणावरणं पंचविहं सुयं आभिणिबोहियं । ओहिनाणं च तइयं मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ निद्दा तहेव पयला निद्दानिद्दा पयलपयला य । तत्तो य थी गिद्धी उ पंचमा होइ नायव्वा ॥ ५ ॥ चक्खुमचक्खुओहिस्स दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं नायव्वं दंसणावरणं ॥ ६ ॥ वेयणीयं पिय दुविहं सायमसायं च आहियं । सायरस उ बहू भेया एमेव असायस्स वि ॥ ७ ॥ मोहणिज्जं पि दुविहं दंसणे चरणे तहा । दंसणे तिविहं वृत्तं चरणे दुविहं भवे ॥ ८ ॥ [- ३३८

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