Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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पमायट्ठाणे .
[-३३.९२ एगन्तरत्ते रुइरंसि फासे अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥७॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे। चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे॥७९॥ फासाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसनिओगे। वए विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥८०॥ फासे अतित्ते य परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्टि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥१॥ तहाभिभूयस्य अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वडा लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चाई से ॥८२॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते। एवं अदत्ताणि समाययन्तो फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥८३॥ फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि। तत्थोवमोगे वि किलेसदुखं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासम्मि गओ पोसं उवह दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणार कम्मं जं से पुणो होड दुहं विवागे॥ ५॥ फासे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥८६॥ मणस्त भावं गहणं वयन्ति तं रागहेडं तु मणुन्नमाहुः । तं दोसहेउं अमणुनमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो॥८७॥ भावस्स मणं गहणं वयन्ति मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेडं अमणुनमाहु ॥८॥ भावेसु जो गिद्धिमुवेद तिव्वं अकालियं पावर से विणासं। रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावाहिए गए वा ॥८॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तसि क्खणे से उ उवेह दुक्ख । दुद्दन्तदोसण सएण जन्तू न किचि भावं अवरुज्झई से ॥१०॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि मावे अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥९१॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसह णेगरूवे। चित्तेहिं ते परितावेइ ब्राले पीलेइ अत्तगुरू किलिटे ॥ ९२ ॥

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