Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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३२.३--]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
तहसेस मग्गो गुरुविद्धसेवा विवज्जणा बालजणस्स दूरा । सज्झायएगन्तनिसेवणा य सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥ ३ ॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ ४ ॥
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न वा लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एको वि पावाई विवज्जयन्तो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो ॥ ५ ॥
जहा य अण्डप्पभवा बलागा अण्डं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हा मोहं च तण्हाययणं वयन्ति ॥ 11 रागो य दोसो विय कम्मबीयं कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति ॥ ७ ॥ दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तन्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचणाई ॥ ८ ॥
रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं ।
जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा ते कित्तइस्सामि अहाणुपुवि ॥ ९ ॥ रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥ १० ॥ जहा दवग्गी परिन्धणे वणे समारुओ नोवसमं उवेइ । एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो न बम्भयारिस्स हियाय करसई ॥ ११ ॥ विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं ओमासणाणं दमिइन्द्रियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ १२ ॥ जहा बिराला सहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बम्भयारिस्स खमो निवासो ॥ १३ ॥ नवलावण्णविलासहासं न जंपियं इंगियपहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता दहुं ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ असणं चेव अपत्थणं च अचिन्तणं चेव अकित्तणं च । इत्थी जणस्सारियझाणजुग्गं हियं सया बम्भवए रयाणं ॥ १५ ॥ कामं तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा विवित्तवासो मुणिणं पत्थो ॥ १६ ॥ मोक्खाभिकंखिस्स उ माणवस्त संसार भीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७ ॥

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