Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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२९-३९ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
.८८
अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ॥ ३९ ॥
४० भत्तपच्चक्खाणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ भ० अणेगाईं भवसयाइं निरुम्भइ ॥ ४० ॥
४१ सब्भावपञ्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ स० अनियि arat | अनियgिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ तं जहा वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ वुज्झइ मुच्चइ सव्वदुकखाणमन्तं करेइ ॥ ४१ ॥
४२ पडिवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० लाघवियं जणयइ ।" - लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइसमन्नागए यावि भवइ ॥ ४२ ॥
४३ वेयावच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वे० तित्थयरनामगोतं कम्मं निबन्धइ ॥ ४३ ॥
४४ सव्वगुणसंपन्नया णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ स० अपुणरा-वत्तिं जणयइ । अपुणरावत्ति पत्तर य णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ 88 ॥
४५ वीयरागयाए णं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वी० नेहाणुबन्धणाणि तण्हाणुबन्धणाणि य वोच्छिन्दइ मणुन्नामणुन्नेसु सदरूवर सफरिसगन्धेसु चेव विरज्जइ ॥ ४५ ॥
४६ खन्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ख० परीसहे जिणइ ॥ ४६ ॥ ४७ मुक्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ मु० अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ॥ ४७ ॥
४८ अज्जवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ अ० काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्नया ए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥ ४८ ॥
४९ मद्दवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ म० अणुस्सियत्तं जणय | अणुस्सियते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्टावेइ ॥ ४९ ॥
५० भावसच्चेणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ भा० भावविसोहिं जणयइ ॥ भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपनत्तस्स धम्मस्स आरा हणयाए अब्भुट्ठेइ | अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्त आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स आराहए हवइ ॥ ५० ॥

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