Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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८६
२९.१७-1
उत्तराध्ययनसूत्रम्
१७ खमावणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावसुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मेत्तीभावमुप्पाएइ। मेत्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काऊण निभए भवइ ॥१७॥ १८ सज्झाएण भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ स० नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ ॥ १८ ॥
१९ वायणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वा० निज्जरं जणयइ । सुयस्स य अणासायणाए बट्टए । सुयस्स अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलम्बइ । तित्थधम्मं अवलम्बमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ ॥ १९ ॥
२० पडिपुच्छणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० सुत्तत्थतदुभया विसोइ । खामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ ॥ २० ॥
२१ परियहणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० वंजणाई जणयइ वैजगलद्धिं च उप्पाएइ ॥ २१ ॥
२२ अणुप्पेहा णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ अ० आउयवज्जाओ सतकम्मप्पगडीओ घणियबन्धणबद्धाओ सिटिलबन्धणबद्धाओ पकरेह | दीहकालइयाओ हस्सकालट्ठियाओ पकरेइ । तिव्वाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ । [ बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ ] आउयं च णं कम्मं सिया बन्धइ सिया नो बन्धइ । असायावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ अणाइयं च णं अणवद्ग्गं दीहमद्धं चाउरन्तं संसारकन्तारं खिप्पामेव वीइवयइ ॥ २२ ॥
२३ धम्मकहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ध० निज्जरं जणयइ । धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबन्धई ॥ २३ ॥
२४ सुरस आराहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सु० अन्नाणं ads न य संकिलिस्सइ ॥ २४ ॥
२५ एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ए० चित्तनिरोह करेइ ॥ २५ ॥
२६ संजमएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सं० अणण्हयन्तं जणयइ ॥ २६ ॥ २७ तवेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ २७ ॥
२८ वोदाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वो० अकिरियं जणयः । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ २८ ॥

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