Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
View full book text
________________
२७.७ -]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
छिन्नाले छिन्दइ सेल्टिं दुद्दन्तो भंजए जगं। से वि य सुस्सुयाइत्ता उज्जाहत्ता पलायए ॥७॥ खलंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा। जोइया धम्मजाणम्मि भजन्ति धिइदुन्धला॥८॥ इडीगारविए एगे एगेऽत्थ रसगारवे। सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे॥९॥ भिक्खालसिए एगे एगे ओमाणभीरुए। थद्धे एगे अनुसासम्मी हेऊहिं कारणेहि य ॥१०॥ सो वि अन्तरभासिल्लो दोसमेव पकुवई। आयरियाणं तु वयणं पडिकूलेइऽभिक्खणं ॥११॥ न सा ममं वियाणाइ न य सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोऽत्थ वच्चउ ॥१२॥ पेसिया पलिउंचन्ति ते परियन्ति समन्तओ। रायवेटुिं च मन्नन्ता करेन्ति भिडिं मुहे ॥१३॥ वाइया संगहिया चेव भत्तपाणेण पोसिया। जायपक्खा जहा हंसा पक्कमन्ति दिसोविसिं। १४॥ अह सारही विचिन्तेइ खलंकेहि समागओ। किं मज्झ दुटुसीसेहिं अप्पा मे अवसीयई ॥१५॥ जारिसा मम सीसाओ तारिसा गलिगदहा। गलिगदहे जहित्ताणं दढं पगिण्हई तवं ॥१६॥ मिउ मद्दवसंपन्नो गम्भीरो सुसमाहिओ। विहरइ महिं महप्पा सीलभूएण अप्पणा ॥ १७॥त्ति वेमि ॥
॥ खलुंकिज्जं समत्तं ॥ २७॥
॥ मोक्खमग्गगई अष्टाविंशतितमं अध्ययनम् ।।
मोक्खमग्गगई तच्चं सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाणदसणलक्खणं ॥१॥

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132