Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 63
________________ २१.१२–] उत्तराध्ययनसूत्रम् अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य वम् अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महत्वयाणि चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥ १२ ॥ सवेहिं भूपहिं दयाणुकम्पी खन्तिक्खमे संजयबम्भयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयन्तो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ॥ १३७ काले कालं विहरेज्ज रहे बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा वयजोग सुच्चा न असम्ममाहु ॥ १४ ॥ उdeमाणो उ परिव्वज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थऽभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजय ॥ १५ ॥ अगछन्दामिह माणवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ १६ ॥ परी सहा दुव्विसहा अणेगे सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणा दंसमसा य फासा आयंका विविहा फुसन्ति देहं । अकुक्रुओ तत्थऽहियासपज्जा रयाइं खेवेज्ज पुरेकडाई ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेव दोसं मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो । मेरु व्व वापण अकम्पमाणो परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥ १९ ॥ अणुन नावणए महेसी न यावि पूयं गरहं च संजए । .स उज्जुभावं पडिवंज्ज संजय निव्वाणमगं विरए उवेइ ॥ २० ॥ अरइरइसहे पहीणसंभवे विरए आयहिए पहाणवं । परमट्टपपार्ह चिट्टई छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥ २१ ॥ विवित्तलयणाई भएज्ज ताई निरोवलेवाई असंथडाई । इसीहि चिण्णाई महायसेहिं कारण फासेज्ज परीसहाई ॥ १२ ॥ स नाणनाणीवगए महेसी अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी ओभासई सूरिए वन्तलिक्खे ॥ २३ ॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्यमुक्के । रित्ता समुहं व महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥ ॥ त्ति मि ॥ समुद्दपालीयं समत्तं ॥ ११ ॥ /

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