Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 65
________________ २२.१५ – ] उत्तराध्ययनसूत्रम् जीवियन्तं तु संपत्ते मंसट्टा भक्तियव्वए । पासेत्ता से महापने सारहिं इणमब्बवी ॥ १५ ॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छहिं ॥ १६ ॥ अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुझं विवाहकज्जं मि भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७ ॥ सोऊण तस्स वयणं बहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्ने साणुक्को से जिएहि उ ॥ १८ ॥ जइ मज्झ कारणा एए हम्मन्ति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥ १९ ॥ सो कुण्डलाण जुयलं सुत्तगं च महायसो । आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ॥ २० ॥ मणपरिणामे य कए देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्विड्डीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे ॥ २१ ॥ देवमणुस्सपरिवुडो सीयारयणं तओ समारूढो । निक्खामय बारगाओ रेवययंमि द्विओ भगवं ॥ २२ ॥ उज्जाणं संपत्तो ओइण्णो उत्तिमाओं सीयाओ । साहसीए परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहिं ॥ २३ ॥ अह से सुगन्धगन्धि तुरियं मउकुंचिए । सयमेव लुंबई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥ २४ ॥ वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छियमणोरहे तुरियं पावसू तं दमीसरा ॥ २५ ॥ नाणेणं दंसणेणं च चरित्तेण तवेण य । खन्तीए मुक्ती वडमाणो भवाहि य ॥ २६ ॥ एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जणा । अरिट्टणेमिं वन्दित्ता अभिगया बारगापुरिं ॥ २७ ॥ सोऊण रायकन्ना पव्वज्जं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा सोगेण उ समुत्थिया ॥ २८ ॥ राईमई विचिन्ते धिरत्थु मम जीवियं । जा हं तेण परिचत्ता सेयं पव्वइउं मम ॥ २९ ॥

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