Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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सभिवखू
[-१५.२ भोगे भोच्चा वमित्ता य लहुभूयविहारिणो। आमोयमाणा गच्छन्ति दिया कामकमा इव ॥४४॥ इमे य बद्धा फन्दन्ति मम हत्थऽजमागया। वयं च सत्ता कामेसु भविस्सामो जहा इमे ॥४५॥ सामिसं कुललं दिस्स बज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामो निरामिसा ॥४६॥ गिद्धोवमा उ नचाणं कामे संसारवणे। उरगो सुवण्णपासे ब्व संकमाणो तणुं चरे ॥ ४७॥ नामो व्य बन्धणं छित्ता अप्पणो वसहिं वए। पयं पच्छं महारायं उसुयारि सि मे सुखं । ४८ चइता विउलं रज्जं काममोमे व दुरचए । निम्बिसया निरामिसा निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥४९॥ सम्मं धम्मं वियाणित्ता चच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्मऽहक्खायं घोरं घोरपरकम्मा ॥५०॥. एवं ते कमसो बुद्धा सव्वे धम्मपरायणा। जम्ममच्चुभउविंग्गा दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥५१॥ सासणे विगयमोहाणं पुवि भावणमाविया । अचिरेणेव कालेण दुक्खस्सन्तमुवागया । ५२॥ राया सह देवीप माहणो य पुरोहिओ। माहणी दारगा चेव सम्वे ते परिनिवुड ॥२३॥ तिमि ॥
॥ उसयारिज समत्तं ॥१४॥
॥ सभिक्खू पञ्चदशं अध्ययनम् ॥
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं जहिज्ज अकामकामे अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥१॥ राओवरयं चरेज्ज लाढे विरए वेयवियाऽऽयरखिए। पन्ने अमिभूय सव्वदंसी जे कम्हि चि न मुच्छिए स भिक्खू ॥२॥

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