Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 51
________________ १८.५४-] उत्तराध्ययनसूत्रम् कहं धीरे अहेऊहिं अत्ताणं परियावसे । सम्वसंगविनिम्मुक्के सिद्ध हवह नीरए ॥५४॥त्ति बेमि ॥ ॥संजइज्जं समत्तं ॥१८॥ ॥ मियापुत्तीयं एकोनविंशतितमं अध्ययनम् ॥ सग्गीवे नयरे रम्मे काणणुज्जाणसोहिए। राया बलभद्दा त्ति मिया तस्सग्गमाहिसी॥१॥ तेसिं पुत्ते बलसिरी मियापुर्त त्ति विस्सुए। अम्मापिऊण दइए जुवराया दमीसरे ॥२॥ नन्दणे सो उ पासाए कीलए सह इथिहिं। देवे दोगुन्दगे चेव निच्चं मुइयमाणसो ॥३॥ मणिरयणकोट्टिमतले पासायालोयणटिओ। आलोएड नगरस्स चउक्वतियचञ्चरे ॥४॥ अह तत्थ अइच्छन्तं पासई समणसंजयं। तवनियमसंजमधरं सीलड्डूं गुणआगरं ॥५॥ तं देहई मियापुत्ते दिट्टीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरिसं एवं दिट्टपुत्वं मए पुरा ॥६॥ साहुस्स दरिसणे तस्स अज्झवसाणाम्मि सोहणे । मोहंगयस्स सन्तस्स जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥ जाईसरणे समुप्पन्ने मियापुत्ते महिड्डिए । सरई पोराणियं जाइं सामण्णं च पुरा कयं ॥८॥ विसपहि अरज्जन्तो रज्जन्तो संजमम्मि य। अम्मापियरं उवागम्म इमं वयणमबी ॥९॥ सुयाणि मे पंच महन्वयाणि नरएसु दुक्खं च तिरिकव जोणिसु । निविणकामो मि महण्णवाओ अणुजाणह पन्वइस्सामि अम्मो ॥१०॥ अम्मताय मए भोगा भुत्ता विसफलोरमा । पच्छा कडुयविवागा अणुबन्धदुहावहा ॥११॥

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