Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 32
________________ हरिएसिज्जं [ थलेसु बीयाई ववन्ति कासगा तहेव निन्नेसु य आससाए । एयाह सद्धाए दलाह मज्झं आराहए पुण्णमिणं खु खेत्तं ॥ १२ ॥ खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए जहिं पकिण्णा विरुहन्ति पुण्णा । जे माहणा जाइविज्जोववेया ताई तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥ १३ ॥ कोहो य माणो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताइं तु खेत्ताई सुपावयाई ॥ १४ ॥ तुभेत्थ भो भारधरा गिराजं अटुं न जाणेह अहिज्ज वेए । उच्चावयाई मुणिणो चरन्ति ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥ १५ ॥ अज्झायाणं पडिकूलभासी पभाससे किं तु सगासि अहं । अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं न य णं दाहामु तुमं नियण्ठा ।। १६ ।। समिईहि मज्झं सुसम । हियस्स गुत्ताहि गुत्तस्स जिइन्दियस्य । जइ मे न दाहित्य आहेसणिज्जं किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं ॥ १७ ॥ के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं दण्डेण फलएण हन्ता कण्ठम्मि घेतूण खलेज्ज जो णं ॥ १८ ॥ अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दण्डेहि वित्तहि कसेहि चेव समागया तं इसि तालयन्ति ॥ १९ ॥ रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया भद्द-त्ति नामेण अणिन्दियंगी । तं पालिया संजय हम्ममाणं कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेद । २० ॥ देवाभिओगेण निओइएणं दिना मु रन्ना मणसा न झाया । नरिन्ददेविन्दऽभिवन्दिएणं जेणम्हि वन्ता इसिणा स एसो ॥ २१ ॥ एसो हु सो उग्गतवो महप्पा जिइन्दिओ संजओ वम्भयारी । जो मे तथा नेच्छइ दिज्जमाणि पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना ॥ २२ ॥ महाजसो एस महाणुभागो घोरवओ घोरपरक्कमो य । मा एयं हीलह अहीलणिज्जं मा सब्वे तेपण भे निद्दहेज्जा ॥ २३ ॥ एयाई तीसे वयणाई सोच्चा पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाई । इसिस्स वेयावडियट्टयाए जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति ॥ २४ ॥ ते घोररूवा डिय अन्तलिक्खेऽसुरा तर्हि तं जणं तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमन्ते पासितु भद्दा इणमाह भुज्जेो ॥ २५ ॥ गिरिं नहिं खणह अयं दन्तेहिं खाग्रह | जायतेयं पापहि हणह जे भिक्खु अवमन्नह ॥ २६ ॥ २९ - १२-२६

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