Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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बहुस्सुयपुज्ज
[-- ११.३१ जहा करेणुपरिकिण्णे कुंजरे सट्रिहायणे । बलवन्ते अप्पडिहए एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १८ । जहा से तिक्खसिंगे जायखन्धे विराई । वसहे जूहाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥१९॥ जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे एवं हवइ. बहुस्सुए ॥२०॥ जहा से वासुदेवे संखचक्कगयाधरे। अप्पडिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥२१॥ जहा से चाउरन्ते चक्कवट्टी महिथिए। चोद्दसरयणाहिवई एवं हवह बहुस्सुए ॥२२॥ जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरन्दरे। सक्के देवाहिवई एवं हवा बहुस्सुए ॥२३॥ जहा से तिमिरविद्धंसे उच्चिटन्ते दिवायरे। जलन्ते इव तेएण एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २४॥ जहा से उडवई चन्दे नक्खत्तपरिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णमासीए एवं हवा बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से सामाइयाणं कोट्रागारे सुरक्खिए। माणाधनपडिपुणे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवरा जम्बू नाम सुदंसणा। अणाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २७॥ जहा सा नईण पवरा सलिला सागरंगमा। सीया नीलवन्तपवहा एवं हवा बहुस्सुए ॥२८॥ जहा से नगाण पवरे सुमहं मन्दरे गिरी। नाणोसहिपज्जलिए एवं हवह बहुस्सुए ॥२९॥ जहा से सयंभूरमणे उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ ३० ॥ समुद्दगम्भीरसमा दुरासया|
अचक्किया केणइ दुप्पहंसया। . सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो . खावतु कम्म गइमुखमं गया ॥३१॥

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