Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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॥३२७॥
अथार्यसुहस्तिशेषवक्तव्यतामाह;इयरो उज्जेणीए जियवंदण वसहिजायणा साहू । भद्दागेहम्मी जाणसालत्थाणं णलिणिगुम्मे ॥२१४॥१॥ सवणमवंतिसुकुमाल विम्हय सरणं विराग गुरुकहणा। पव्वमि उस्सुगोऽहं करेमि तह अणसणं सिग्धं ॥२१५॥२॥ जणणीपुच्छमणिच्छे मा हु सयंगहिलिंगमो दाणं। कंथारिगिणि सिवपेल्ल जाम जाणूरुपोट्ट मओ ॥२१६॥३॥ अहियासिऊण तग्गयचित्तो उववन्नगो तहिं सो उ । गंधोदगादि गुरुसाहणं च भद्दाए वहयाणं ॥२१७॥४॥ गोसम्मि तहि गमणं मयकिरीया देसणा गुरूणं च । पव्वयणं णावन्नातीए पुत्तोत्ति आयतणं ॥२१८॥५।। एमादुचियकमेणं अणेगसत्ताण चरणमाईणि। काउण तओऽवि गतो विहिणा कालेण सुरलोयं ।।२१९।।६।। दुहवि जहजोगत्तं तहा पवित्ती अणेगहा एसा। भणिया णिउणमतीए वियारियव्वा य कुसलेण ॥२२०॥६॥
कालगयम्मि महागिरिमुणिवसहे अह कयाइ विहरंतो। जियपडिमवंदणहेउमागओ दुत्थियत्थकरो ॥१।। सुरीसुहत्थिनामा उज्जेणीए ठिओ बहि तेण । भणिया मुणीणो सव्वे गोयरगमणुम्मणा संता ॥२॥ जाएजह अज जणालयाण मज्झम्मि साहुजणजोग्गं । वसहिं तेसिमहेगो संघाडो मंदिरम्मि गओ ||३।। भद्दाए सत्थवाहीए भिक्खणट्टा सगउरवं तीए । अब्भुट्ठिओ य णमिओ य पुच्छिओ कस्स भे सीसा? ॥४॥ अज्जसुहत्थी अम्हं सामी वसहि तयत्थमत्थेमो । इय भणिए पुलयंकरविसदेहाए तीए मुणी ।।५।। अप्पाणं कयकिच्चं च मन्नामाणाए जाणसालाओ। अव्वावाराओ बहुप्पयारमुणिजण-समुचियाओ ॥६॥ संति चिय एयाओ अणुगिण्हह इय भणेउमुचि
॥३२७॥

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