Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 389
________________ ।।३८१॥ पुव्वाभासिरी सिरीव सयं । रूवेण जोव्वणेण य विणयाइमणीखणी तस्स ॥३॥ विसयसुहं सेवंतस्स तस्स तीए समं समंताओ । दूरोसरियविसायस्स वासरा वासवसमस्स ॥४॥ लच्छीविलासकलियस्स जाव गच्छंति तावदो पुत्ता। जाया कमेण अपराइओ य तह समरकेऊ य ॥५।। अहिसित्तो जुवरज्जे सयलकलाजलहिपारमणुपत्तो। अपराइओ कुमारो मारोवमसुन्दरागारो ।।६।। दिन्ना पुण उज्जेणी कुमारभुत्तीए समरके उस्स । एवं गच्छंतेसुं दिणेसु कइयावि भूवालो ॥७।। एक्को तद्दे सविलोलकारओ भूरिरोसओ जाओ। रन्नो लद्धाणुन्नो अपराइओ य तञ्जयनिमित्तं ॥८॥ चउरंगबलसमेओ गओ रणं तेण दारुणं लग्गं । परिखुद्धजलहिकल्लोलसरिससेन्नस्स तस्स लहुं ।।९॥ उद्दडकंडपक्खेवठइयनहमंडलं भिडंतभडं। उन्भडकरडिघडाडोवविहडियासेसपरचकं ॥१०॥ निसियद्धचंदसंदोहवाहच्छिज्जंतचिंधझयछत्तं । उम्मुकभेरवारावनियरसद्दीकयदिसोहं ।।११।। अञ्चुग्गखग्गपरिहम्ममाणनचंतउद्ध रकबंधं । जमनयरपरिसरसमं बीभच्छमपेच्छणीयं च ।।१२।। तत्थोवलद्धजयसिरिसंगो तत्तो नियत्तमाणो सेो । पासइ खिईपइट्टियनयरे सूरि कयविहारं ।।१३।। राहाभिहाणमुज- लचरणं सुविसुद्धसुयमणिनिहाणं । तस्संते सुयधम्मो सम्मं च भवा विरत्तमणो ॥१४।। वत्थंचलग्गलग्गं व तणमसे| संपि रजासिरिमेसेो । परिवञ्जइ सञ्जो वजसारचित्तो विहियकज्जे ॥१५॥ उवलद्धदुविहसिक्खो णिचं गुरुचरणतामरसभसलो। कुसलासओ विहारं धरायले कुणइ सव्वत्थ ॥१६॥ राहायरिया तगराए आगया अन्नया विहारेण । तईया नयरी नवघणधारासित्तव्व गिम्हमही ॥१७॥ उग्गयवेरग्गंकुरपूरा बाढं मणोहरा जाया । विज्झायकसाय ॥३८१।।

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