Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 394
________________ श्रीउपदे- शपदे ।। ३८६ गिहे इओ तओ अच्छइ भमंतो ॥७७॥ संवच्छरिए तस्सेव माहणाईण भायणनिमित्तं । पिसियं पभूगमुवकप्पियं तओ श्री अर्हद्द तोदाहरसूयगारीए ॥७८॥ कहमवि पमत्तभावं गयाए गसियं तयं विरालीए । तत्तो कोवपराए तीए पिसियस्सणुवलंभे ॥७९॥ अन्नस्स सुच्चिय हओ पसाहियमिमस्स तं लहुं मंसं । सो पुण रोसपरवसा तत्थेव गिहे अही जाओ ॥८॥ जाओ य जाइसरणो णेहाओ गिहे तहिं चिय भमंतो । अच्छइ अविसंकमणो पलोयमाणो नियकुडुंबं ॥८॥ दिट्टो सूयारीए कोलाहलवाउलीकयगलाए । भीयाए अइदढलउडताडणा मरणमुवणीओ ।।८२।। संपन्नसुद्धिलेसो नियपुत्तस्सेव सो सुओ जाओ। ठवियं असोगदत्तो त्ति तस्स नामं पिइजणेणं ॥८३॥ पइदिवसमुवचयं सो लहंतओ अह सिसुच्चिय कयाइ। तह चेव जाइसरणो संपन्नो लजिओ संतो ।।८४॥ ण तरइ तणयं बप्पं ति भाणिउं न य बहुपि जणिति। तो मोणव्वयपरमो ठिओ स मूगत्तणं पत्तो ।।८५।। कुमरत्तेण ठियस्स उ एगंतेणेव विसयविमुहस्स । तस्सन्नया मुणिदो निम्मलचउणाणसंपन्नो ॥८६॥ गामागरनगरसमाउलम्मि भूमंडलम्मि विहरतो । णामेणं धम्मरहो समोसढो बाहिरुजाणे ॥८७।। उवओगेोऽणेण कओ जह बोही कस्स होहिही एत्थ । णायं जहेस तावसजीवा मूयत्तणं पत्तो ।।८८।। लद्धावसरो संपइ बोहीलाभस्स पेसिओ ताहे । संघाडगो तयग्गम्मि गाहमेयं पढेइ जहा ।।८९॥ तावस ! किमिहा । मोणव्वएण पडिवज जाणिउं धम्मं । मरिऊण सुयरोरग जाओ पुत्तस्स पुत्तोति ॥९०।। तं सोऊण विम्हियचित्तो ते साहुणोऽभिवंदेइ । पुच्छइ तह कहमेसो मम वुत्तंतो अहिगओ त्ति ।।९।। तो भासंत वियाणइ अम्हाण गुरू वयं न उण किंचि । सो भयवं कत्थच्छइ पुट्ठो तेणं भणंति जहा ॥९२।। उजाणम्मि मणोरमणामे कयसंभमो तओ जाइ ।

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