Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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श्रीभरत ब्रह्मचक्रि चरि.
४२२।
प्रोउपदे- लिहोवलघडियमइरुइरं ॥४॥ नियतणुसोहासंदसणत्थमादरिसमंदिरं विसइ । कप्पदुमं व पुप्फियमप्पाणं सो निभालेइ शपदे
।।५।। जा ताव एगमंगुणिमवगयनियभूसणं नियइ हत्थे । दिट्ठा विणट्ठसोहा मणागमह चितए एवं ॥६॥ णूणं ण निया सोहा देहस्स इमस्स जं गया छाया । जाया झत्ति करंगुलिरेसा नियभूसणविहीणा ।।७।। ता पजतमिमेहि जणियाए मज्झ देहसोहाए। मोत्तुं कमेण लग्गो ताइं स उदग्गवेरग्गा ॥८॥ एसा य रायलच्छी पबलानिलदोली. यंबुरुहसरिसा । तुच्छा वोच्छेयफला अलाहि इण्हि ममेईए ।।९।। इह सुद्धज्झाणपरो जा बट्टइ ताव संजमट्ठाणं । पढमं पत्तो तत्तो खणेण से केवली जाओ ॥१०॥ संजमठाणेसु असंखलोगमाणेसु जो जिओ पढमं । (ठाणं) चिय पावइ सो खणेण परिवुड्डपरिणामो ।।११।। गंतुं संजमसेढीसीसं संपत्तकेवलालोओ। होइ जह भरहचक्की भणियमिणं कप्पभासम्मि ।।१२।। अह उज्झियगिहिलिंगो विसिट्ठमुणिवेसधारगो होउं । सुरसामिणा सयं चिय संपाडियपयडपरममहो ॥३१।। सुरनिम्मियपउमेयरनिसन्नओ सो जिणोव्व परिसाए । आढत्तो परिकहिउ धम्म नवमेहगहिरसरो ।।१४।। पुव्वाण लक्खमक्खंडमेगमेवं महिं विहरिऊण । अठ्ठावयम्मि सिद्धो निद्ध यरओ | स भगवंति ।।१५।। डा. जो एस बंभदत्तो चक्की जम्मंतराइं तस्सेह । निसुणिजंति इमाइं नियाणबंधो फलं चेव ॥१॥ सागेयम्मि पुरविरे सावगलोगावतंसओ आसि । चंदावतंसनामा नराहिवो निम्मलनयट्ठो ॥२॥ तस्स सुपवित्तचित्तो पुत्तो मुणि
चंदनामगो सो य । निम्विन्नकामभोगो सागरचंदंतिए दिक्खं ॥३।। अइतिक्खं पडिवन्नो विहरतो तेसु तेसु देसेसु । गुरुच
॥४२२॥

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