Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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॥ ४०७॥
कयाइ ||२८||
।।२७।। अइचित्तं गहचरियं सुमिणो सउणाइयं निमित्तं च । देवो व जाइयाई फलंति जइ कम्सइ ता णो बुद्धिधणेहि तसियव्वं धीरिमं वहतेहि । उचिओवायपरेहिं होयव्वं तहवि निश्चपि ॥ २९ ॥ परिघडियणिउणनीईण दूरओ मुक्ककुपहगमणाण । दिव्वाउ विहडिओवि हु कजारंभो न दोसाय ||३०| मंजूसाए ता पुत्त ! पविस पक्खस्स भोयणजलाणि । एयाणि तणुट्टिईए ठाणाणि य तो तहा विहिए ||३१|| उवगम्म रायपासे निवेश्यं मंतिणा जहा एत्तो । पुरिसपरंपरपत्तं वित्तं कजओ नियायत्तं ।। ३२ । भणियं रन्ना मा बीहसुत्ति को जाणई भविस्सइ कि । एयमणिच्छंतोवि हु तेण पडिच्छाविओ राया ||३३|| नीया सा मंजूसा भंडार गिहम्मि राइणो भणियं । इह देव ! सव्वसारं संचिट्ठइ पक्खमेगंते ||३४|| संरक्खिजउ सव्वायरेण मज्झोवरोहओ चेव । निविडाई तालगाई दिन्नाई सव्वओ तीसे ।। ३५ ।।
तह सीसगमुद्दाओ पपहरं तह य दुण्णि पाहरिया । एवं कयसुविहाणो सो सचिवो विम्हण खणं ॥ ३६ ॥ कि एसो विहडेज्जा मज्झ पओगो अचितचरियं च । दिव्वं किंच न होजा खणं विसाएण छुप्पतो ।। ३७ ।। जा चिट्ठ तेरसमम्मि वासरे ता पभायसमयम्मि । कण्णंतेउरपरिसंठियाए कण्णाए णरवइणो ||३८|| जाओ वेणीछेओ केण कओ इ निमित्तचिताए । जाओ कत्ति पवाओ जह मंतिसुएण जेट्टेण ||३९|| एसा किल नियमंदिरसेज्जापरिसंठिया समागम्म । विन्नत्ता रमसु मए सममुम्मोलियकमलणयणे ! ॥ ४०॥ भणिया बहुपि णेच्छइ जावेसा ताव रोसवसगेण । वेणी छुरियाहस्थेण कत्ति छिण्णा अणेणत्ति ॥ ४१|| तो अंसुपुण्णणयणा कलुणमुही विस्सरं विरुयमाणा । पिउणो
॥ ४०७॥

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