Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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।।३८३॥
तो नायतग्गिहेणं विसजिओ सो मुणी तेण ॥३३॥ तम्गेहम्मि अगिओ महया सद्दे ण धम्मलाभो त्ति । भणिए भयाउराओ अंतेउरियाओ निहुएण ॥३४।। सन्नं करेंति सदृण हत्थसंचालणाइणा चेव। सो अवहेरिपहाणो जा चिट्ठइ ताव ते कुमरा ॥३५।। आयन्नियतस्सद्दा उवगम्म दुवारघट्टणं काउं । उवहासपरा अभिवंदिऊण भासंति तं भयवं ! ॥३६॥ णच्चस सो भणइ कहं गीएण विणा पवाइएणं च । नचिजइ सुक्खत्तणमहो कहं तुम्ह जायं ति ? ॥३७॥ तो ते भणंति अम्हे गीयाइ कुणेसु तं तह कुणंति । उत्तालविसमतालं अकोलकावा मुणी भणइ ।।३८॥ एयारिसम्मि गीए पवाइए मुक्खलोगजेोगम्मि । णो णच्चामि सरोसा तं कड्ढेउं समाढत्ता ॥३९॥ जयणाए बाहुजुद्धम्मि कुसलभावाओ चित्तलिहियध। वियलंगसंधिबंधे तत्तो काउ गओ सोवि ॥४०॥ तेसिं पीडं अह भायणाइपचहमणुसरंतस्स । णो भिक्खायरियाए अडण जायं नगरबाहिं ॥४१॥ पइरिक ठाणे संठियस्स चिताउरस्स तकालं । सोहणनिमित्तलाभे होही चरणं धुवं तेसि ॥४२॥ जाया धिई विसुज्झतमाणसो कुणइ ताव सज्झायं । ताहे कुमारपरियण जण रा कहियं नरवइस्स ॥४३॥ सव्वं कुमारचरियं तो गुरुमूलं निवो गओ भणइ । मुणिणो खमापहाणा जं होंति कयावराहे वि ॥४४।। एस कुमरावराहो खमिजऊ संपयं तओ मज्झ । भणइ गुरु नवि जाणे साहूणं केणई कुमरा ॥४५॥ जं थंभिया मुणी तो पुच्छइ तेवि य भणंति केणावि । णम्हाण विहियमेयं निवेा भणइ नन्नह इमंति ।।४६।। णूणं तेणं आगंतुएण मुणिणा कयंति भणिऊण । जाओ तस्सन्नेसणपरायणो अहिगए तम्मि ||४७।। तस्स समीवमुवगओ जा पासइ ताव परिगयमिमस्स । एसो पराजिओ नाम जेटुभाया मम, दुठु ।।४८।। अव्वो! विचिट्ठियं जं न मए
॥३८३।।

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