Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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श्रीउपदे-
शपदे
नवाओ जिनिवेइयं जिलाहिं जहोचिया
॥३८२॥
दवग्गिदाहवाहा तहा झत्ति ॥१८॥ उजेणीओ पुरीओ तस्संतियमागयं च साहुजुयं । तगराए पडिवत्ती साहूहि जहोचिया श्रीअर्हद्दविहिया ।।१९।। समयम्मि सूरिणा पुच्छिया तच्चेइयाण संघस्स । कुसलपउत्ती तेहि य निबेइयं जिणघरेसु जहा ।।२०॥ त्तोदाहर उस्सप्पंति वराओ· पूयाओ निक्खमंति य रहाओ । ठाविखंति नवाओ जिणपडिमाओ य सुगुरूहि ॥२१॥ कय
णम् परमपयासंघो संघोवि य विग्यविरहिओ कुणइ । गुरुसुस्सूसणाइकिरियाओ निययवत्थासमुचियाओ ॥२२॥ नवरमभद्दगरूवा रायपुरोहियसुया परिहवंति । साहू, बहिं विहारो गओवसग्गो तहिं सेसो ॥२३।। तं सोच्चा अपराजिय साहू चितापरो दढं जाओ । कह मह सहोयरो वि य होउं राया इय पमत्तो ।।२४।। जं ण कुमारे दुविणयकारिणोऽसमाण किरियाण । साहूण सव्वजयवच्छलाण दूरं निवारेइ ॥२५॥ अरहंत चेइयाणं पडणीय तह अवन्नवायं च । जिणपवयणस्स अहियं सव्वत्थामेण वारेइ ।।२६।। इय आणाणुसरणओ सो परिभावेइ निग्गहे तेसि । सत्ती ममस्थि एवं दया य महई कया हाइ ॥२७॥ अन्नह साहुपओसा वज्जियदुञ्जयतमोभरालीढा । जच्चंघव्व अणंतं भमिहति भवं दुहकिलंता ॥२८॥ .
आपुच्छिऊण सूरि परेण विणएण पट्टिओ नयरि । उजेणि पइ पत्तो कमेण साहूण वसहीए ॥२९॥ विहिया । वंदणगाई उचियठिई पायसोहणाई य। पत्ते भिक्खाकाले पत्तुग्गाहणपरो भणिओ ॥३०।। साहूहिं अज अम्हं पाहूणगो तं विलंवसु भणाइ। अहमत्तलद्धिओ मे ण अन्नलद्वी उवगरेइ ।।३१।। ता ठवणकुलाणि अभद्दयाणि लोगे दुगुंछणिज्जाणि । तह जाई ताई दंसह दंसिजंतेसु तेसु कमा ॥३२॥ एगेण साहुणा दंसियं च तं पञ्चणीयकुमरगिहं ।

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