Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________
श्रीउपदे
शपदे
11३७४||
भायणं भारिया य जलणसिहा । दुस्सीललोयमाणसबियप्पभसलोलिजलणसिहा । ॥३॥ सावगधम्मपराणं ताणं कुलस-दहनसुरोमुचियकमरयाणं। वोलीणेसु दिणेसु केवइएसुं सुहसरूवा ॥४॥ जाया कमेण पुत्ता जलणो डहणो य वुड्डिमणुपत्ता।
दारणम अम्मापिऊण चित्ताणुसारिणो सव्वकजेसु ॥५।। अह धम्मघोससूरी सूरोव्व समत्थभव्वकमलाणं । संपत्तोविहरतो ठिओय मुणिसमुचिए ठाणे ।।६।। पोठसमुग्गयतोसेण वंदिओ पुरजणेण सो भयवं । निसुओ धम्मो भवचारगाओ निस्सारगो धणियं ।।७।। विहुयासणो समुट्ठिय वंदित्तु हुयासणो भणइ एवं । भयवं! भवभीयमणो सकुडुबो दिक्खि उमणो हं
८. तुह पायपंकयंते न विलंबो सोम ! एत्थजुत्तो ते । इय उवलद्धगुरुमणो कयजिणपूयाइकरणिज्जो ।।९।। अइचोअकरणसज्ज पव्वजं संपवइजई एसो। सकुडंबसंपरिवुडो संवुडसव्वासवदुवारो ।।१०॥ अबुग्गभवविरागं तं कुणइ कुडंबयं तवं घोरं । पव्वजं चणवजं सुद्धज्झवसायसंजुत्तं ।।११।। नवरि दहणो पवंचइ जलणं मायाइ सव्वकिरियासु । एसागच्छामि अहं इच्चाइ भणित्तु ठाणाइ ।।१२।। आयरइ ण उण अन्नं विवरीयपयत्थपन्नवणपमुहं । इय पायं सो जम्मो एयस्स गओ पमाएण ।।१३॥ णो तं मायासल्लं गुरुणो आलोइयं कयाइयवि । संलेहणाइ विहिणा विहियाणसणो मओ संतो ॥१४॥ सोहम्मे उववन्नो जलणोवि य उजुभावओ चेव । तविहकिरियानिरओ तत्थेव सुरत्तणं ॥३७४|| पत्तो ॥१५॥ सकस्स तिन्नि परिसा बज्झा मज्झा तहंतरा चेव । जवणा-चंडा-समिया नामाओ अंतराए समं ॥१६॥ परिभावइ कज्जमहेयराए सद्धि दढं तयं कुणइ । कज्जादेसा तइयाए होइ अवियप्पकरणिज्जो ॥१७।। आहूय च्चिय समिया समेइ मज्झा दुहावि जयणाओ । सयमेव सक्कपासे संतोसवसुम्मणा संता ॥१८॥ अभितरपरिसाए

Page Navigation
1 ... 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438