Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 386
________________ अर्हद्दत्तोदाहरणगाथाः श्रोउपदे- समयज्ञाः सिद्धान्तविदः । कुतः । यतस्ततः प्रतिबन्धादुत्तरकालं भावाराधनसंयोगात् तात्त्विकसम्यग्दर्शनादिसमासेवशपदे नारूपात् अविकलमखण्डं गमनं निर्वाणे भविष्यतीति ।।२८३।। अथार्हद्दत्तोदाहरणम् ; एलउरं जियसत्तू पुत्तो अवराजिओ य जुवराया। बिदिओ य समरकेऊ कुमारभुत्तीए उज्जेणी ॥२८४॥१॥ ।।३७८| पचंत विग्गहजए आगच्छंतस्स नवरि जुवरन्नो । राहायरियसमीवे धम्मभिवत्तीए णिक्खमणं ॥२८५॥२।। तगरा विहार उजेणीओ तत्थजराह साहूणं । आगमणं पडिवत्ती विहारपुच्छा उचियकाले ॥२८६॥३॥ रायपुरोहियपुत्ता अभद्दगा तक्कओ उ उवसग्गो। सेसो उ निरुवसग्गो तत्थ विहारो सति जईणं ॥२८७॥४॥ अवराजियस्स चिता पमत्तया भाउणो महादोसो। तह चेव कुमाराणं अणुकंपा अत्थि मे सत्ती ॥२८८॥५॥ गुरुपुच्छ गमण संपत्ति पवेस बंदणादि उचियदिई । सति कालुग्गाहणमच्छणं खु अहमत्तलद्धी उ ॥२८९।।६।। ठवणकुलादिनिदसण पडणीयगिहम्मि धम्मलाभो त्ति । अंतेउरियासन्नणमवहेरि कुमारगागमणं ॥२९०॥७॥ पढम दुवारघट्टण बंदण णचाहि तत्थ सो आह । कह गीयवाइएणं भणंति अम्हे इमं कुणिमो ॥२९१॥ ८॥ आरंभविसमतालं अकोवकोवे ण एवं णच्चामि । कढण जयण निउद्धं चित्तालिहियव्व साहुगमो ॥२९२।।९।। पीडंतराय न अडण पइरिके चित सोहणनिमित्तं । होहिति चरणंति धितीजोगो सज्झायकरणं तु ॥२९३॥१०॥ रायकुमारावेयण गुरुमूलागमण खमसु अवराहं । आह गुरु नवि जाणे साहहि थंभिया कुमरा ॥२९४॥११॥ ||३७८॥

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