Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 377
________________ मणयाउयं निबद्ध लद्ध सम्मत्तबीयं च ॥१२७।। अड्राइजदिणंते उवसंते वणदवम्मि जीवगणे । निस्सरियम्मि पएसा ताओ पायं तुमं मोत्तुं ॥१२८॥ जा चेटसि ता थेरत्तणेण परिजुनपुन्नसव्वंगो। रुहिराऊरियसंधिट्ठाणो दूरं परिकि लंतो ॥१२९।। वजाहउव्व सेलो धसत्ति धरणीयले तओ पडसि । दाहजराउरदेहो कागसिगालाइभक्खणओ ॥१३०॥ ।।३६९॥ तिक्खं वियणमुवगओ तिन्नि य राइंदियाणि जीवित्ता। वाससयमाउयं पालिऊण सुहभावणोवगओ ॥१३॥ कालं किच्चा इह धारिणीए कुच्छिसि पुत्तभावेण । उववन्नो ता मेहा! तुमए एयारिसा वियणा ॥१३२।। सोढा तिरिएणावि हु अमुणियदुत्तरभवस्सरूवेण । ता अज किमंग सहेसि नेव मुणिदेहसंघट्ट ? ॥१३३।। सुयपुव्वभवो जाओ जाईसरणो खणेण सो ताहे । दूरुग्गयवेरग्गा हरिसंसुजलाउलच्छो य ॥१३४॥ काउं पयाहिणतिगं वंदित्ता भावओ य भयवंतं । मिच्छादुक्कडपुव्वं भणइ मोत्तु ममच्छिजुगं ॥१३५।। जं सेसमंगमेयं दिन्नं साहूण तो जहिच्छाए। संघटुंतु अभिग्गहमिय गिण्हइ सो मुणी मेहो ॥१३६।। एक्कारस अंगाई अहिजिउं विहियभिक्खुपडिमो सेा। गुणरयण-RAI वच्छरतवं काउं संलिहियसव्वंगा ॥१३७।। परिचितइ जाव जिणो सव्वसुहत्थी विहारमायरइ । ता चरमकालकिरिया Iol काउं मे जुञ्जए तत्तो ।।१३८॥ आपुच्छइ भगवंतं जह अहयं सामि! तवविसेसेण। एएणट्ठाणणिसीयणाइकट्ठण |X३६९।। x काहामि ॥१३९।। तुम्हाणन्नाए गिरिम्मि विउलनामम्मि रायगिहबाहिं । एयम्मि अणसणविहिं विहेउमिच्छा मम समत्थि ।।१४०॥ तो लद्धाणुनाओ खामित्ता समणसंघमन्नेहिं । कडजोगीहिं समेओ मुणीहिं सणियं समारुहइ ।।१४१॥ तत्थ गिरिम्मि विसुद्ध सिलायले सयलसल्लविमुक्को। पालियपक्खाणसणो विजयविमाणे समुप्पन्नो ॥१४२।। तस्स

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