Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 370
________________ श्रीमेघकु|मारोदाह रणम श्रीउपदे- जाओ। तीसे जहा अहं हत्थिरायसेयणगमारूढा ॥२०॥ उवरि धरियायवत्ता सेणियरायन्निया सपरिवारा। पाउसशपदे लच्छीविच्छडुमंडिए नगरमज्झम्मि ॥२१॥ वइभारगिरिपरिसरे तह बाहि सव्वओ वहंतीसु । गिरिनिन्नगासु नचंनएसु सिहिमंडलेसु तहा ॥२२॥ उदंडविज्जुदंडाडंबरपरिमंडिए दिसाचक्के । दद्द, रकुलारवाऊरिएसु नहविवरभागेसु ॥२३॥ सुयपिच्छसच्छएहि समंतओ मालिए धरणिवलए। हरियंकुरेहिं वित्थारिएहि जह नीलवत्थेहि ॥२४॥ धवलवलाहयपं।।३६२॥ तीसंचरणालंकियासु य दिसासु । सव्वालंकारधरा हिंडामि अहं जइ, कयत्थं ॥२५॥ मन्नामि जम्ममेयं, अपूरमाणम्मि तम्मि संदेहे । जाया दुब्बलदेहा दूरं विच्छायवयणा य ॥२६॥ अंगपडिचारियाहिं तं तदवत्थं पलोइय निवस्स । IAS साहियमज जहा देव ! देवी दोसइ निरभिरामा ॥२७॥ इय देवीवुत्तंतं सोउं राया ससंभमो संतो । गंतुं तीए समीवे एवं भणिउं समाढत्तो ॥२८॥ दुव्वारवेरियपरा| जिएसु वइरीसु मइ फुरंतम्मि । कोणु पराभवमिहकाउमीसरी तुज्झ सुविणेवि ? ॥२१॥ पणयब्भंसो वि ममाउ नत्थि सइ जीवियाओ अहियाए । इच्छामेत्ताणंतरसंपाइयचितियत्थाए ॥३०॥ तव चरणकमलभसरे सयले सयलाभिलासकरणसहे । देवि ! सहीलोगम्मि वि दढं सढत्तं न पेच्छामो ॥३१॥ तव आणाभंगावि हु संभाविजइ न बंधुलोगम्मि । तह किंकरेसु किं किं करेसु इय जंपमाणेसु ॥३२।। संतोसपासपडिघायगेसु एएसु ते असंतेसु । उव्वेयकारणं | किं कहेसु सरइंदुसोममुहि ! ॥३३।। इय सेणिएण पुट्ठा सा देवी परिकहेइ जह सामि ! । मज्झं अकालजलवाहगोयरो डोहलो जाओ ॥३४॥ मा तम्मसु जह सञ्जो संपञ्जइ एस तह जइस्सामि । चितासल्लपिसल्लो तस्स महल्लो Al||३६२।।

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