Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 11
________________ १० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी जयानंदविजयजीना कारणे फरज पडी छे. वळी मुनिराज श्रीओ पोताना बने पुस्तकोमां अप्रस्तुत चर्चाओ पण घणी करी छे. तिथि / संमेलन / बोली / स्वप्नद्रव्य / ईष्टफल सिद्धि आदि मुद्दाओ पूर्वे घणीवार चर्चाइ गयेला छे. पुन: ते मुद्दाओने उपस्थित करवानी कोई जरुर नहोती. तपागच्छना शांत वातावरणमां पथरा नांखवानी जरुर नहोती. छतां मुनिराज श्रीओ आ कार्य कया कारणसर कर्तुं हशे ते समजातुं नथी. सत्य त्रिकालाबाधित होय छे ते क्यारे असत्य थई जवानुं नथी. बाकी असत्य उपर गमे तेटला सत्यना आवरणो चढाववामां आवे पण तेनुं असली स्वरुप तो स्वयमेव प्रगट थई जतुं होय छे. याद रहे के, आ. श्री राजेन्द्रसूरिजी द्वारा तैयार करावेला अभिधान राजेन्द्र कोषमां पण चैत्यवंदन-प्रतिक्रमण विभागमां चार थोयथी ज चैत्यवंदना करवानी कही छे. श्रुतदेवता - क्षेत्रदेवताना कायोत्सर्ग करवाना पण कह्या छे. आ पुस्तकमां पण ओ पाठोनो समावेश कर्यो ज छे. आ पुस्तकमां प्रश्नोत्तरीरुपे तमाम शंकाओना समाधान आपवामां आव्या छे. पुस्तक ज ज्यारे कंईक कहेतुं होय, त्यारे प्रस्तावनामां तेना माटे वधु लखवुं उचित नथी. वाचकोनी याद राखवानी मर्यादा अने परस्परना अनुसंधान विना बोध थतो न होवाथी अमुक शास्त्रपाठो बे-त्रण वार आप्या छे, तेनी नोंध लेवी. वाचको आ पुस्तकमा वर्णवेला पदार्थोंने अने संकलित करेला विषयोने वांचीने सत्यनो निर्णय स्वयं करे तेवी भलामण. मारा आ नानकडा प्रयास द्वारा सौ कोई सत्य समजीने यथाशक्य आदरीने मुक्ति सुखने पामे अ ज ओकनी ओक सदा माटे शुभाभिलाषा. -मुनि संयमकीर्तिविजय

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