Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari Author(s): Sanyamkirtivijay Publisher: Nareshbhai Navsariwale View full book textPage 9
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी छे. तथा ४७मी गाथामां सम्यग्दृष्टि देवताओ पासे समाधि-बोधीनी मांगणी कराई छे. निशीथ सूत्र जणावे छे के, प्रत्येक धर्मक्रिया 'इरियावही' कर्या बाद करवामां आवे तो ज शुद्ध बने छे. 'पाक्षिक सूत्र' ना अंते बोलाती 'सुयदेवया भगवई' स्तुतिमां सूचित 'श्रुतदेवता' पदथी श्रुतदेवी ज ग्रहण करवानी छे. एवं टीकाकारो स्पष्ट फरमावे ट्रंकमां सम्यग्दृष्टि देवताओ पासे समाधि-बोधी आदिनी मांगणी करवामां लेशमात्र दोष नथी, एम अनेक ग्रंथो अने सुविहित परंपरा स्पष्ट पणे जणावे छे. छतां छेल्ला केटलांक वर्षोथी चालुं थयेलो त्रिस्तुतिक मत तेनो विरोध करे छे अने पोताना मतनी सिद्धि माटे अनेक असत्य युक्ति-प्रयुक्ति पण आपे छे. अने शास्त्रपाठोना अर्थघटन खोटा करे छे. सवंत ११५० थी संवत १२५० वच्चेना विषम काळमां वीरप्रभुनी पाटपरंपराथी जे विशुद्ध क्रियामार्ग चाल्यो आवतो हतो, तेनी सामे घणा पडकारो उभा थया. ___ संवत ११५९मां पूनमियो गच्छ प्रवो . संवत १२०४मां 'खरतर' मत प्रवयो. १२१४मां अंचलगच्छ निकल्यो. १२३६मां सार्द्धपूर्णिम गच्छ चालुं थयो अने संवत १२५०मां त्रिस्तुतिक=त्रण थोय माननारो मत प्रगट्यो. आ तमाम मतो स्व-स्व मान्यताना आग्रहमांथी प्रवर्तेला छे. पोताना मिथ्या आग्रहना कारणे शास्त्र अने शास्त्रमान्य परंपराथी अलग थयेला छे. तेमांना केटलाक मतो चाल्या न चाल्या ने लुप्त प्रायः थया. त्रिस्तुतिक मत पण लुप्त प्राप्तः थयो हतो. परंतु छेल्ला सो-सवासो वर्ष पहेलां तेने पुनः स्थापित करवानो जोरशोरथी प्रयत्न चालुं थयो. तत्कालीन तपागच्छना महापुरुष पू.आ.भ.श्री आत्मारामजी महाराजाए ते समये ते मतनो शास्त्राधारे जबरजस्त विरोध कोPage Navigation
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