Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी हतो. तेओश्रीमदे स्थानकवासी मतने शास्त्रविरुद्ध असत्य जाणीने त्यां पोतानो महा महिमा हतो, छतां तेने छोडीने तपागच्छनी संवेगी दीक्षा अने सुविशुद्ध परंपरानो स्वीकार को हतो. सत्यनो स्वीकार कर्या बाद असत्यनो विरोध पण को. तेनो लाभ पण थयो. तेओ श्रीमदे पुनः चालुं थता त्रिस्तुतिक मतनुं खंडन करवा, तेनी शास्त्रविरुद्धता सिद्ध करवा माटे अनेक शास्त्रोना सहारे 'चतुर्थ स्तुति निर्णय' भाग-१ अने २ ओम बे ग्रंथो (पुस्तको) लख्या हता. ते बे ग्रंथोथी चतुर्विध संघ सत्यमां स्थिर हतो ते वधु स्थिर बन्यो . ते पछी पं.श्री कल्याणविजयजी म.सा. राजस्थानमां विचरीने त्यां जे जे लोको अमां अटवाया हता. तेमने तेमांथी उगारी लेवा पुस्तक लख्या हतां अने तेनुं सारुं परिणाम पण आव्युं हतुं. जो के, वर्तमानमा हाल तेनी चर्चा करवानुं के आ मुद्दाने उकेलवा- कोई ज कारण नहोतुं. आम छतां गमे ते कारणे मु.जयानंदविजयजीओ पुनः आ प्रश्नने उपस्थित करवा पुस्तिकाओ लखवानुं शरु कयुं छे. जे वांचीने अनेक लोको वारंवार आ अंगे पूछवा आवतां तेमनी जिज्ञासाने संतोषवा अने खोटी रीते कोई खोटा मतमा फसाई न जाय ते माटे आ पुस्तकलखवानी फरज पडी छे. जवाब न अपाय तो, खोटा होय तो क्याथी जवाब आपे? आवी वातो पण चाली, माटे आ ग्रंथ प्रकाशित कराई रह्यो छे. बाकी तो अमने मळेली माहिती मुजब राजस्थानना भांडकजी तीर्थमां चतुर्थस्तुतिनी मान्यता धरावता पूर्वाचार्योने मिथ्यादृष्टि, नरके जनारा वगेरे सज्झायरुपे रचीने शीलालेखमां पण कोतरी नांख्युं छे. ___कई हद सुधीनो मताग्रह ! कई हद सुधीनो दुर्भाव ! मतभेदने मनभेदमां पलटाववानी कई हद सुधीनी मनोदशा! आमां क्या मैत्रीभाव रह्यो? छतां आज सुधी कांई लखवा- विचार्यु न हतुं. परंतु मुनिराज

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 202