Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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अर्द्धच्छेद अथवा "लागएरिम टू दा बेस टू' मानकर धर्म सिद्धान्तादि में गगानाओं को सरलतम बना दिया था वैसे ही आज काम्प्यूटरों में भी दो को आधार चुना गया है। ताकि पूर्णांकों में परिणाम राशि की सार्थकता को प्रतिबोधित कर सकें।
तिलोयपण्णत्ती में बीजरूप प्रतीकों का कहीं-कहीं उपयोग हुआ है । रिण के लिये उसके संक्षेप रूप को कहीं-कहीं लिया गया दृष्टिगत होता है, जैसे रिण के लिये 'रि'। मूल के लिए 'मू । रिण के लिये । जगच्छेपी के लिए आड़ी लकीर '_' । जगत्प्रतर के लिये दो आड़ी क्षैतिज लकीरें "=" । घन लोक के लिए तीन पाड़ी लकीरें "" । रज्जु के लिए 'र', पल्य के लिये 'प', सूर्यगुल के लिये '२', आवलि के लिए भी '२' लिया गया। नेमिचन्द्राचार्य के ग्रंथों को टीकाओं में विशेष रूप से संदृष्टियों को विकसित किया गया जो उनके बाद ही माधवचन्द्र विद्याचार्य एवं चामुण्डराय के प्रयासों से फलीभूत हुना होगा, ऐसा अनुमान है ।
जहाँ तक मापिकी एवं ज्यामिति विधियों का प्रश्न है, इन्हें करणानुयोग ग्रन्थों में जम्बूद्वीपादि के वृत्त रूप क्षेत्रों के क्षत्रफल, धनुष, जीवा, बाण, पार्श्वभुजा, तथा उनके अल्पबहुत्व निकालने के लिये प्रयुक्त किया गया। तिलोयपण्णत्ती में उपर्युक्त के सिवाय लोक को वेष्टित करने वाले विभिन्न स्थलों पर स्थित वातवलयों के आयतन भी निकाले गये हैं जो स्फान सदृश प्राकृतियों, क्षेत्रों एवं आयतनों से युक्त हैं । इनमें आकृतियों का टापालाजिकल डिफार्मेशन कर घनादिरूप में लाकर धनफल प्रादि निकाला गया है, प्रतएव विधि के इतिहास की दृष्टि से यह प्रयास महत्त्वपूर्ण है।
व्यास
व्यास द्वारा वृत्त की परिधि निकालने की विधियां भी विश्व में कई सभ्यता वाले देशों में पाई जाती हैं । तिलोयपण्णत्ती जैसे करणानुयोग के ग्रंथों में पाराध का मान स्थूल रूप से ३ तथा सूक्ष्म रूप से V१० दिया गया है। वीरसेनाचार्य ने धवला ग्रन्थ में एक और मान दिया है जिसे उन्होंने सूक्ष्म से भी सूक्ष्म कहा है और वह वास्तव में ठीक भी है । बह चीन में भी प्रयुक्त होता था : परिधि = ३५५-३.१४१५६३ : किन्तु वीरसेनाचार्य ने जो संस्कृत श्लोक उद्धृत किया है उसमें व्यास १ १६ अधिक जोड़कर लिखा जाने से वह अशुद्ध हो गया है :
१६ (व्यास) + १६ । ३ ( व्यास ) = परिधि
जो कुछ हो यह तथ्य चीन और भारत रो गणितीय सम्बन्ध की परम्परा को जोड़ता प्रतीत होता है । प्रदेश और परमाणु को धारणाएँ यूनान से संबंध जोड़ती हैं तथा गरिणत के प्राधार पर अहिंसा