Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
४६ ] .
तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : १७०-१७२ ऊर्ध्वलोकके व्यास एवं ऊँचाईका प्रमाण सेढीए सत्त-भागो उरिम-लोयस्स होदि मुह-वासो। पण-गुणिदो तम्भूमी उस्सेहो तस्स इगि-सेठी ॥१७॥
।७।७५।
अर्थ :-ऊर्वलोकके मुख का व्यास जगच्छणीका सातवाँ भाम है और इससे पाँचगुणा ( ५ राजू) उसकी भूमिका व्यास तथा ऊँचाई एक जगच्छणी प्रमाण है ॥१७०।।
विशेषार्थ :-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोकके समीप एक राजू , मध्यमें ५ राजू और ऊपर एक राजू चौड़ा एवम् ७ रानू ऊँचा है।
सम्पूर्ण ऊर्ध्वलोक और उसके अर्धभागका घनफल तिय-गुणिदो सत्त-हिदो उवरिम-लोयस्स घणफलं लोनो। तस्सद्ध खेत्तफलं तिगुणो चोदस-हिदो लोगो ॥११॥
अर्थ :-लोकको तीनसे गुणा करके उसमें सातका भाग देनेपर जो लब्ध प्रावे उतना ऊर्ध्वलोकका धनफल है और लोकको तीनसे गुणा करके उसमें चौदहका भाग देनेपर लब्धराशि प्रमाण ऊर्बलोक सम्बन्धी प्राधे क्षेत्रका घनफल होता है ।। १७१।। विशेषार्ण :-३४३४३+७= १४७ धन राजू ऊर्ध्वलोकका धनफल ।
३४३४३ : १४-७३३ वन राजू अर्ध ऊर्वलोकका घनफल ।
ऊर्ध्वलोकमें असनालोका घनफल छेत्तूणं 'तस-गालि 'अण्णत्थं ठाविदूरण विदफलं । प्राणेज्ज तं पमाणं उणवण्णेहि विभत्त-लोयसमं ॥१७२॥
१. द, तस्सपालि । २. द. ब. अगद्ध . अटू । ३. द. क. ज. ठ. विंदुफल ।