Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ गाथा : ४८-५२ ] तदियो महाहियारो अष्टमंगल द्रव्य भिंगार - कलस दप्पण - घय-चामर छत्त- वियण-सुपइट्ठा । इय श्रटु-मंगल वर्क प्रतिपर्ण ॥१४८॥ अर्थ :- भारी, कलश, दर्पण, ध्वजा, चामर, छत्र, व्यजन और सुप्रतिष्ठ ये आठ मंगल द्रव्य हैं, जो प्रत्येक एकसौ आठ कहे गये हैं ॥४८॥ जिनालयोंको शोभाका वर्णन विप्पंत- रयण-दीवा जिण भवणा पंच-वण्ण रयस्प-मया । 'गोसीस - मलय चंदण - कालागरु-धूव-गंधड्ढा १४६॥ भंभा-मुइंग-मद्दल- जयघंटा - कंसताल - तिबलीगं । दुहि पहावीणं सद्दहिं पिच्च हलबोला ॥। ५० ।। अर्थ :-- देदीप्यमान रत्नदीपकोंसे युक्त वे जिनभवन पाँच वर्णके रत्नोंसे निर्मित गोशीर्ष, मलयचन्दन, कालागरु और धूपकी गंधसे व्याप्त तथा भम्भा, मृदंग, मल, जयघंटा, कांस्यताल, तिवली, दुन्दुभि एवं पटहादिकके शब्दोंसे नित्य ही शब्दायमान रहते हैं ।।४६ ५०11 नागयक्ष युगलोंसे युक्त जिनप्रतिमाएँ सिंहासनादि सहिदा चामर करणागजक्खमिहुण-जुदा । जाणाविह रामया जिण-परिमा ।।५१॥ तेसु भवणे [ २७९ अर्थ :-- उन भवनों में सिहासनादिकसे सहित, हाथमें चैवर लिए हुए नागयक्ष युगलसे युक्त तथा नाना प्रकारके रत्नोंसे निर्मित जिनप्रतिमायें हैं ||११|| जिनभवनों की संख्या बाहतरि लक्खाfरंग कोडीओ सत्त जिण णिगेण । प्रादि- हिगुज्भिाणि भवण- समाई विराजति ॥५२॥ ७७२००००० । १. ब. सियं । २. द. ब. क. ज. ठ. गोसीर ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434