Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 364
________________ तदिश्रो महाहियारो ४. द्वीपकुमार - हाथी, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी 1 ५. उदधिकुमार – मगर, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व श्रौर नर्तकी । ६. विद्यनुकुमार - ऊँट, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी । ७. स्तनितकुमार - गंडा, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी । ८. दिक्कुमार सिंह, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्ध और नर्तकी । ६. अग्निकुमार - शिविका, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नर्तकी । १०. वायुकुमार - अश्व, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नर्तकी । गाथा : ८०-८१ ] गच्छ समे गुणयारे परोप्परं गुणिय रूत्र-परिहीणे' । एक्कोण-गुण-विहते गुणिवे वयणेण गुण-गणिवं ॥ ८० ॥ अर्थ :- गच्छके बराबर गुणकारको परस्पर गुणा करके प्राप्त गुणनफलमेंसे एक कम करके शेष में एक कम गुणकारका भाग देनेपर जो लब्ध श्रावे उसको मुखसे गुणा करनेपर गुरणसंकलित धनका प्रमाण भाता है ||८०|| [ २८७ विशेषार्थ : स्थानोंके प्रमाणको पद और प्रत्येक स्थानपर जितनेका गुणा किया जाता है उसे गुणकार कहते हैं । यहाँ पदका प्रमाण ७, गुणकार ( प्रत्येक कक्षाका प्रमाण दुगुना दुगुना है अतः गुणकारका प्रमाण ) दो और मुख ६४००० है । उदाहरण - पद बराबर गुणकारोंका परस्पर गुणा करनेपर (२४२x२x२४२४२४२) अर्थात् १२० फल प्राप्त हुआ, इसमेंसे १ घटाकर एक कम गुणकार ( २ – १ == १ ) का भाग देनेपर ( १२८ - ११२७÷१ ) = १६७ लब्ध प्राप्त हुआ । इसका मुखसे गुणा करनेपर (६४०००x१२७ ) अर्थात् ८१२८००० गुणसंकलित धन प्राप्त होता है । एक्कासी लक्खा प्रडवीस - सहस्स- संजुदा चमरे । होंति हु महिसासपीया पुह पुह तुरयादिया वि तम्मेत्ता ॥ ८१ ॥ ८१२५००० । १. ब. द. क. ज. ठ. परिहरणो ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434