Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 372
________________ [ २६५ गाथा : १००-१०४ ] तदिओ महाहियारो पडिइंदावि-चउण्हं वल्लहियाणं तहेव देवीणं । सव्वं विउन्वरणादि णिय-रिणय-इयाण सारिच्छं ॥१०॥ मर्थ :--प्रतीन्द्र, त्रास्त्रिश, सामानिक और लोकपाल, इन चारोंकी बल्लभाएं तथा इन देवियोंकी सम्पूर्ण विक्रिया आदि अपने-अपने इन्द्रोंके सदृश ही होती हैं ।।१००। सय्येसु इंदेसु तगुरक्ख-सराण होंति देवीश्रो । पसक सय-भत्ता निश्चम-लांब-लीलामो ॥१०१।। १०० मर्थ :-सब इन्द्रोंमें प्रत्येक तनुरक्षक देवको अनुपम-लावण्य लीलाको धाररा करने वाली सौ देवियाँ होती हैं ॥१०१11 अढाइज्ज-सयाणि देवीमो दुवे सया दिवड़द-सयं । प्राविम-मज्झिम बाहिर-परिसासु होंति चमरस्स ॥१०२।। २५० । २००। १५ । अर्थ :-चमरेन्द्र के प्रादिम, मध्यम और बाह्य पारिषद देवोंके क्रमशः ढाईसौ, दोसौ एवं डेढ़सौ देवियाँ होती हैं ॥१०२।। देवीमो तिण्णि सया अड्ढाइज्जं सयाणि दु-सयारिण । पादिम-मज्झिम बाहिर-परिसासु हाँति बिदिय-इंबस्स ।।१०३॥ __३०० । २५० । २००। अर्थ :-द्वितीय इन्द्रके आदिम, मध्यम और बाह्य पारिषद देवोंके क्रमशः तीनसी, ढाईसी एवं दोसी देवियाँ होती हैं ॥१०३।। वोणि सया देवीप्रो सट्ठी-घालादिरित्त' एक्क-सयं । जागिदाणं अभितरादि-ति-परिस-वेवसु ॥१०॥ २०० । १६० । १४० । १. द.ब. चालादिरत्त । २. द. ब. क. ज. ठ. तिप्परिसदेवीस ।

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