Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 397
________________ ३२० ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : १८८-१६४ जीवसमासा दो चिचय णिवित्तियपुण्ण-पुण्ण भेदेण । पज्जती छच्चेय य तेत्तियमेत्ता अपज्जत्ती ॥१८॥ प्रयं :-इन देवोंके नित्यपर्याप्त और पर्याप्तके भेदसे दो जीवसमास, छह पर्याप्तियाँ और इतने मात्र ही अपर्याप्तियाँ होती हैं ।।१८८॥ पंच य इंविय-पाणा मण-वय-कायाणि प्राउ-प्राणपाणाई। पज्जते दस पाणा इदरे मण-ययण-प्राणपाणूणा ॥१६॥ पर्ष :...पर्याप्त अवस्थामें पांचों इन्द्रियप्राण, मन, वचन और काय, प्रायु एवं प्रानप्राण ये दस प्राण तथा अपर्याप्त अवस्थामें मन, वचन और श्वासोच्छ्वाससे रहित शेष सात प्राण होते हैं ॥१८९॥ चउ सण्णा तानो भय-मेहुण-पाहारनाथ-णामाणि । नेवासी शाखा ताकामा एक्करस-जोगा ॥१६॥ चउ-मण-चउ-वयणाई बेगुन्व-दुगं तहेव कम्म-इयं । पुरिसिस्थी 'वेद-जुदा सयल-कसाएहि परिपुण्णा ॥१६१॥ सन्वे छण्णाण-जुदा मदि-सुद-णाणाणि ओहि-जाणं च । मदि-अण्णाणं तुरिमं सुद-अण्णाणं विभंग-णाणं पि ॥१६२॥ सव्ये असंजवा ति-इंसण-जुत्ता प्रचक्खु-चक्खोही । लेस्सा किण्हा गोला कउया पीता य 'मज्झिमंस-जुदा ॥१३॥ भव्याभव्या, "पंच हि सम्महि समण्णिदा सन्थे । उबसम-वेदग-मिच्छा-सासण -मिच्छाणि ते होंति ॥१४॥ अर्थ :-वे देव भय, मैथुन, आहार और परिग्रह नामबाली चारों संज्ञापोंसे, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति और त्रसकाय से चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, दो वैक्रियिक ( वैक्रियिक, वैक्रियिक १. द. व. संहूणा, ज. संडूम्या, ठ. संदूणा । २. द. ब. क. ज. स. असंजदाई-दसण-जुत्ता य चक्खुप्रचनाखोही । ३. द. क. मझिमस्स-जुदा, ब. मज्झिमस-जुदा । ज. 3. जिमस्सजुदा । ४. व. क. ज. . एच हि । ५.ब. सासासण् ।

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