Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 388
________________ तदिन महाहियारो धरणारगंदे श्रहियं वच्छर लक्खं हवेदि वेणुस्स । श्रारोह-वाहणाऊ तु श्रतिरिक्त वेणुधारिस्स ॥ १६० ॥ | व० को १३ व १ ल । व १ल । अर्थ :- घररणानन्दके श्रारोहक वाहनोंकी श्रायु एक करोड़ वर्ष से अधिक, वेणुके प्रारोहक वाहनों की एक लाख वर्ष श्रीर वेणुधारी के आरोहक वाहनोंकी आयु एक लाख वर्षसे अधिक होती है ।। १६० ।। गाथा : १६० १६२ ] पत्त वकमद्ध-लभखं आरोहक वाहणाण जेवाऊ । सेसम्म दक्खिदे श्रदिरित उत्तरवम्मि ।।१६१ ॥ ५०००० पर्य :- शेष दक्षिण इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके श्रारोहक वाहनोंकी उत्कृष्ट श्रायु अर्धलाखवर्ष और उत्तरेन्द्रोंके प्रारोहक वाह्नोंकी श्रायु इससे अधिक है ।। १६१। ठ उवए । जेतियमेत्त आऊ पट्टण अभियोग-किब्बिस-सुराणं । तप्परिमारण-परूवण - उबएसस्स पहि -3 पट्टो ॥ १६२॥ अर्थ :- प्रकीर्णक, अभियोग्य और किल्विषक देवोंकी जितनी जितनी प्रायु होती है. उसके प्रमाण के प्ररूपणके उपदेश इस समय नष्ट हो चुके हैं ।। १६२॥ १. ब. बाणाई । [ भवनवासी इन्द्रोंकी ( सपरिवार ) श्रायुके प्रमाणके विवरण की तालिका पृष्ठ ३१२- ३१३ में देखिये ] [ ३११ २. क. ब. वेणुदारिस्त । ३. द. मेत्तयाऊ, ज ठ मेत्तियाऊ । ४. द. अ. ज.

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